रायपुर। इस बार नौतपा के आखिरी दिन 2 जून को भीमसेनी एकादशी पड़ रही है। पंडितों का मानना है कि भीमसेनी एकादशी पर बिना पानी पीए व्रत रखने वालों को पूरे साल भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। श्रद्धालु दिन भर भूके-प्यासे रहकर भगवान विष्णु की आराधना करेंगे। अगले दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारणा करेंगे।
अमूमन भीमसेनी एकादशी नौतपा के बाद पड़ती थी, लेकिन इस बार नौतपा में पड़ने से यह निर्जला व्रत रखना आसान नहीं होगा। पुजारी पं. मनोज शुक्ला के अनुसार मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी करने से साल भर में पड़ने वाली सभी एकादशी का फल मिलता है। इस दिन जल से भरा कलश, फल, शक्कर, अनाज, वस्त्र, जूते, छतरी, पंखा आदि दान करने का विशेष महत्व है।
ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारद मुनि ने पांडवों से श्रेष्ठ फल की प्राप्ति के लिए साल भर की सभी एकादशी का व्रत करने को कहा था। भीम को चिंता हुई कि वे तो भूखे नहीं रह सकते। इस पर नारदजी ने पूरे वर्ष भर में सिर्फ एक ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी पर बिना पानी पीए व्रत रखने की सलाह दी। भीम ने पूरे दिन बिना अन्न, जल ग्रहण किए व्रत रखा। इसके बाद से ही ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी को भीमसेनी एकादशी के रूप में जाना जाता है।
शास्त्रों में उल्लेखों के अनुसार मान्यता है कि पांडव पुत्र भीम के लिए कोई भी व्रत करना कठिन था, क्योंकि उनकी उदराग्नि कुछ ज्यादा प्रज्वलित थी और भूखे रहना उनके लिए संभव न था। मन से वे भी एकादशी व्रत करना चाहते थे। इस संबंध में भीम ने वेद व्यास व भीष्म पितामह से मार्गदर्शन लिया।
दोनों ने ही भीम को आश्वस्त किया कि यदि वे वर्ष में सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत ही कर लें तो उन्हें सभी चौबीस एकादशियों (यदि अधिक मास हो तो छब्बीस) का फल मिलेगा। इसके पश्चात भीम ने सदैव निर्जला एकादशी का व्रत किया।