मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा के नौ रूपों में से तीसरा रूप हैं। उनका नाम “चंद्रघंटा” दो शब्दों से मिलकर बना है – “चंद्र” और “घंटा”। “चंद्र” का अर्थ है “चंद्रमा”, और “घंटा” का अर्थ है “घंटी”। मां चंद्रघंटा का स्वरूप बहुत ही शांत और सौम्य है। वह हमेशा एक सिंह पर सवार रहती हैं और उनके हाथ में एक धनुष और बाण होते हैं। उनके माथे पर एक चंद्रमा की आकृति होती है, जो उनके नाम के अनुसार है। वह एक शांत और सौम्य मुस्कान के साथ अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। वह अपने भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाती हैं और उन्हें जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करती हैं।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:
– मां चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र
– पूजा की थाली
– अक्षत
– पुष्प
– धूप
– दीप
– नैवेद्य
– फल
– मिठाई
पूजा विधि:
1. स्नान और शुद्धिकरण: पूजा करने से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और मां चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
3. पूजा की थाली तैयार करें: पूजा की थाली में अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल और मिठाई रखें।
4. मां चंद्रघंटा की पूजा करें: मां चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र को पूजा की थाली से पूजा करें। अक्षत, पुष्प, धूप और दीप अर्पित करें।
5. नैवेद्य और फल अर्पित करें: मां चंद्रघंटा को नैवेद्य और फल अर्पित करें।
6. आरती करें: मां चंद्रघंटा की आरती करें।
7. पूजा का समापन करें: पूजा का समापन करें और मां चंद्रघंटा को धन्यवाद दें।
मां चंद्रघंटा की पूजा के लाभ:
– मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
– यह पूजा व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाती है।
– मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद मिलती है।
मां चंद्रघंटा का मंत्र
मुख्य मंत्र:
ॐ श्री चंद्रघंटायै नमः
आराधना मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे
स्तोत्र मंत्र:
चंद्रघंटा श्री महादेवी,
चंद्रमुखी इष्टदेवी ।
तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
तुम्हारी शक्ति अनंत है ।
मां चंद्रघंटा का भोग
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बनी मिठाइयों का भोग समर्पित किया जाता है।
मां चंद्रघंटा शुभ रंग
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन का शुभ रंग लाल होता है।
मां चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नाम के एक राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था, महिषासुर स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था, उसकी यह इच्छा जानकार देवता चितिंत हो गए, जिसके बाद वे अपनी इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के पास पहुंचें, महिषासुर के आतंक की गाथा सुनकर त्रिदेव क्रोधिक हो गए, इस क्रोध के चलते तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई, इसी उर्जा से मां चंद्रघंटा का जन्म हुआ।
महिषासुर का अंत करने के लिए भगवान शंकर ने मां को अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसके बाद सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिया। इंद्रदेव ने मां को अपना एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की।