छठ पूजा का दूसरा दिन खरना है। इस दिन व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है।खरना के दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटकर छठ पूजा संपन्न की जाती है। शुक्रवार को बिहार और यूपी में सूर्यास्त क्रमश: 5:08 और 5:17 तक होगा। इसलिए व्रती इस समय से पहले पूजा की सभी तैयारी पूरी कर लें।
शाम को चावल व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है। घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अघ्र्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं।
खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है और ये चूल्हा मिट्टी के बने होते हैं। चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। खरना इसलिए भी खास है, क्योंकि इस दिन जब व्रती प्रसाद खा लेती हैं तो फिर वे छठ पूजने के बाद ही कुछ खाती हैं