इंदौर मालवीय नगर क्षेत्र में रहने वाले 19 वर्षीय युवक की मौत के बाद रविवार को उसके स्वजन ने मेदांता अस्पताल में जमकर हंगामा किया। स्वजन का आरोप था कि अस्पताल से घर ले जाते समय मृत घोषित किए गए युवक (मरीज) की सांस चलने लगी और उसने एंबुलेंस में हरकत की। उसके बाद जब वापस उसे अस्पताल लाए तो वहां कोई भी डॉक्टर इलाज के लिए मौजूद नहीं था।
इसके बाद लोगों ने इमरजेंसी रूम में तोड़फोड़ की। इसी बीच कुछ लोग मरीज को बॉम्बे अस्पताल लेकर गए जहां युवक को मृत घोषित कर दिया गया। लोगों ने वापस मेदांता अस्पताल आकर हंगामा किया। तीन घंटे बाद शाम चार बजे एफआईआर होने व पुलिस की समझाइश के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए एमवाय अस्पताल भेजा गया।
मृत युवक चंद्रशेखर सेहरिया (लॉ का छात्र) के रिश्तेदार मनीष पंवार ने बताया कि शुक्रवार रात लगभग 12 बजे मरीज को मेदांता लेकर पहुंचे थे। जांच के बाद उसे वेंटिलेटर पर रखा और डॉक्टरों ने स्वजन से मिलने भी नहीं दिया। रविवार सुबह उसे मृत घोषित कर दिया। अस्पताल का पूरा बिल लगभग डेढ़ लाख स्र्पए बना था, लेकिन 50 हजार स्र्पए जमा कराने के बावजूद अस्पताल वाले शव नहीं देने पर अड़े रहे।
बाद में रुपए जमा करने के बाद मृतक को एंबुलेंस से घर लेकर जा रहे थे तो रास्ते में उसने एंबुलेंस से ‘मां-मां” की आवाज लगाई। मनीष के मुताबिक उस दौरान मैं खुद एंबुलेंस में था। वापस अस्पताल लाए तो किसी ने हमारी बात नहीं सुनी। इसके बाद बॉम्बे अस्पताल लेकर गए। रिश्तेदार आशाबाई ने बताया कि डॉक्टरों की लापरवाही से हमारे बच्चे की मौत हुई है। अस्पताल पर कार्रवाई होनी चाहिए। चंद्रशेखर की मां एंबुलेंस में बेटे के शव के पास ही रही। पिता हरनाथ सिंह ने भी कार्रवाई की मांग की।
मृतक के स्वजन ने अस्पताल बंद करने व एफआईआर दर्ज करने की मांग की। मौके पर पहुंचे विजय नगर थाने के पुलिस बल ने अस्पताल के सामने, ओपीडी काउंटर व इमरजेंसी गेट को सुरक्षा घेरे में लिया। दोपहर एक बजे कुछ लोग बॉम्बे अस्पताल से शव लेकर वापस मेदांता अस्पताल पहुंचे।
उनके विरोध के चलते अस्पताल का मेन गेट बंद कर वहां पुलिस कोर्स तैनात किया गया। साथ ही इमरजेंसी गेट व ओपीडी गेट भी बंद करना पड़ा। पुलिस ने अन्य मरीजों की सुरक्षा को देखते हुए उनके पासधारक स्वजन को ही अंदर जाने दिया।
दोस्त प्रतीक मरमट ने बताया कि चंद्रशेखर को किडनी से संबंधित बीमारी थी। हम उसे अस्पताल लेकर आए। रविवार सुबह उसे ब्रेन डेड घोषित किया। घर पर अंतिम संस्कार की तैयारी भी कर ली थी। जब हम एंबुलेंस से घर ला रहे थे तो चीख सुनी। इसके बाद वापस लेकर आए। लेकिन यहां पर कोई देखने वाला नहीं था।
मेदांता अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि मरीज के स्वजन ने डेढ़ लाख स्र्पए जमा नहीं किए थे। 45778 स्र्पए का कुल बिल बना था। इसमें से सिर्फ पांच हजार स्र्पए जमा थे। मृतक का मेडिक्लेम था जिससे यह राशि भी उन्हें बाद में बीमा कंपनी से वापस मिलती। स्वजन खुद लामा कराकर (अपनी सहमति से) मरीज को लेकर गए थे। हमने डेथ सर्टिफिकेट नहीं, लामा सर्टिफिकेट दिया और डिस्चार्ज किया।
मरीज का इलाज करने वाले डॉ. असद रियाज के अनुसार मरीज को किडनी से संबंधित बीमारी थी। किसी दूसरे अस्पताल से उसे डायलिसिस के बाद मेदांता लाया गया। जब उसे लेकर पहुंचे तब तक हालत अत्यंत गंभीर थी। जांच में पाया गया कि ब्रेन स्टेम में रक्तस्राव हुआ है, इसलिए वेंटिलेटर जरूरी है। स्वजन को बता दिया था कि चेतना वापस नहीं आ सकती। स्वजन की दो बार काउंसलिंग कर उन्हें यह जानकारी दी। रविवार सुबह स्वजन की सहमति पर लामा किया गया था। मृत घोषित नहीं किया था।
परिजनों की शिकायत पर केस दर्ज किया गया है। परिजन लापरवाही का आरोेप लगा रहे हैं। मृतक का पोस्टमार्टम कराया गया है। जांच में दोषी पाए जाने पर अस्पताल प्रबंधन पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।