Home मध्यप्रदेश रशियन तकनीक से बना ‘टैंकभेदी बम’….

रशियन तकनीक से बना ‘टैंकभेदी बम’….

142
0

भारतीय सैन्य जवान अब युद्ध मैदान में दुश्मन सेना के गोले बरसाते टैंक को चंद सेकंड में ध्वस्त करने में भी सक्षम रहेंगे। आयुध निर्माणी खमरिया (ओएफके) में रशियन तकनीक से बना ‘टैंकभेदी बम’ (125एमएम एफएसएपीडीएस) दुश्मनों को युद्ध मैदान छोड़ने पर मजबूर करेगा। इस निर्माणी में ‘मैंगो प्रोजेक्ट’ के तहत अगले 4 माह में इन बमों के 20 हजार नग बनाए जाएंगे। भारत-रूस के बीच ट्रांसफर ऑफ टेक्नालॉजी (टीओटी) करार होने के बाद ओएफके में रशियन तकनीक के टैंकभेदी बमों का उत्पादन होने का यह दूसरा मौका है। यह निर्माणी इससे पहले एसकेडी के अंतर्गत 10 हजार टैंकभेदी बमों का उत्पादन कर चुकी है। इसके बाद ओएफके ने रक्षा मंत्रालय के माध्यम से रूस को कच्चा माल (रॉ-मटेरियल) भेजने के आदेश दिए। टीओटी करार के अनुसार रूस ने कच्चा माल भेज दिया। इससे ओएफके में मैंगो प्रोजेक्ट के दूसरे फेज में सीकेडी के तहत टैंकभेदी बम का दोबारा उत्पादन शुरू हो गया।

निर्माणी प्रशासन ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान ही 20 हजार टैंकभेदी बम बनाने का लक्ष्य रखा है। इस वजह से निर्माणी के कर्मचारी तेज रफ्तार से टैंकभेदी बम बनाने में जुटे हैं। ओएफके में रशियन तकनीक से बनाए गए टैंकभेदी बमों का बालासोर फायरिंग रेंज में परीक्षण (टेस्ट) होगा। इस परीक्षण को लेकर निर्माणी प्रशासन उत्साहित है। वहीं बालासोर रेंज प्रबंधन ने ओएफके के टैंकभेदी बम का परीक्षण करने दिसंबर का स्लाट दिया है। ओएफके में उत्पादित रशियन तकनीक के टैंकभेदी बम को 55 एमएम मोटाई की स्टील प्लेट चंद सेकंड में भेदना आसान है। भारतीय सैन्य जवानों को युद्ध मैदान में टैंक से यह बम चलाना पड़ता है, जो कि 500 मीटर से 12 किमी. दूर मौजूद लक्ष्य पर पहुंचकर तबाही मचाता है। इस एक बम की लागत करीब 6 लाख रुपए है। ओएफके प्रशासन ने टैंकभेदी बमों का परीक्षण करने टंगस्टन, स्टील और अन्य धातु मिश्रित मेटल प्लेट फ्रांस से मंगवाई है। इस प्लेट का वजन करीब 8 टन है, जो कि 3 मीटर मोटी, 3 मीटर लंबी और 4 मीटर चौड़ी है। भारत-रूस का टीओटी करार होने के बाद ओएफके में मैंगो प्रोजेक्ट के तहत टैंकभेदी बम का उत्पादन किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट में अब 31 मार्च के पहले 20 हजार नग बनाने का लक्ष्य रखा है। निर्माणी में रॉ मटेरियल आने के बाद से 125एमएम एफएसएपीडीएस का तेजी से उत्पादन हो रहा है। बालासोर फायरिंग रेंज में इन बमों की टेस्टिंग शीघ्र होगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here