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सूचना का अधिकार बना व्यापार…

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भारत सरकार ने भ्रष्टाचारी दूर करने के लिए एक सुलभ तरीका निकाला था जिसे लोगों के द्वारा व्यापार बना दिया गया। आज हमारे भारत वर्ष में 50,000 के लगभग लोग सूचना के अधिकार को व्यापार बनाकर करोड़ों के आसामी बने हुए हैं। भ्रष्टाचारियों ने अधिकारियों से पैसा निकालने का एक तरीका निकाल लिया है। अधिकारी फर्जी बिल निकालने में और सूचना के अधिकार में पैसा लेने में नहीं चूक रहे हैं। बहोत से लोग पत्रकारिता छोड़ सूचना के अधिकार में लगे हुए हैं।

वशिष्ठ टाइम्स कार्यालय में सूचना के अधिकार वालों की 35 पेजों की एक सूची बनी हुई है। राज्य शासन व केंद्र शासन को अगर जरूरत पड़ती है तो वशिष्ठ टाइम्स कार्यालय से इसकी सूची उपलब्ध हो सकती है। बहोत से लोगों ने सूचना के अधिकार के पैसे से कितनी कारें एवं कितने मकान बना लिए। कितने लाख व कितने करोड़ की जमीन खरीद ली। राज्य शासन या केंद्र शासन इस संबंध में किसी को नियुक्ति नहीं देते। लोगों के द्वारा लिखा जाता है कि आर.टी.आई. कार्यकता एक गुमराह शब्द है। आर.टी.आई. का दुरूपयोग किया जा रहा है।

जिला कोरिया एक छोटा जिला है जिसमें आर.टी.आई. लेने वाले 100 से भी अधिक लोग हैं। इनका कार्य यही है कि सिर्फ सूचना का अधिकार ही मांगा जाता है। ऐसे-ऐसे लोग हैं जो एक ही बात पर एक कार्यालय में 10-10, 20-20 बार पत्र लिखते हैं। उच्चाधिकारी को अपील क्यों नहीं करते? इसी प्रकार सूचना के अधिकार का पैसा वसूलने वाले व किस कार्यालय से कितना पैसा लिया गया इसका बायोडाटा व यह पैसा कहां उपयोग किया जाएगा। इसकी जानकारी कंेद्रिय गुप्तचर विभाग को दी जाए।

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