भारत में रोजगार की कमी से लोग पत्रकारित्रा में जुड़ते नजर आ रहे है। आज कल के युग में एक पोर्टल भी जिसे सरकार के नजर में कोई भी रिकार्ड नहीं है माइक लेकर अधिकार से इन्टरव्यू लेने तक का अधिकार नहीं है। पर देखने को मिलता है पत्रकारिता के आढ़ में परिवार शासन में नौकरियां लिए बैठे है यहां तक देखने को मिलता है कि पति टीचर है पत्नि को पत्रकारिता में जोड़ लिया है पत्रकारिता के धौस में गिट्टी, सीमेंट व लोहा भी सप्लाई कर रहे है। एक जगह तो ऐसा भी देखा गया है पत्रकारिता के नाम पर सचिवों से सीमेंट का चेक भी कटवा लिए गए है। और समूह बना-बना कर अधिकारियों सरपंच- सचिवों से पैसा वसूली की जा रही है। जैसे समाचार पत्र का संवाददाता रायपुर का है तो पुरे छ.ग. में समाचार के नाम पर धमकी देकर पुरे छ.ग. में वसूली कर लेता है। सही पत्रकार व संपादक जैसे शेर दहाड़ता है और शियार भागता है वही कहावत हो गया है।
आज भी लोग जिनको वरिष्ठ पत्रकार कहते है वह लोग राष्ट्रीय त्यौहार में विज्ञापन की फर्जी ढ़ंग से किसी का बिल लगाकर वसूली करते है। यहां तक है कि लोग सूचना के अधिकार में करोड़ों के आसामी बन गये है। एक-एक संवाददाता समाचार पत्र के मालिक व मालिकों के पैसा दबा कर वरिष्ठ पत्रकार कहलाते है। ये पत्रकारों की या वरिष्ठ पत्रकार व समूह के द्वारा संस्कार ना पाना अपने बुजुर्ग पत्रकार का सम्मान ना करना ये पत्रकार की धज्जियां उड़ाना नहीं है तो क्या है?