हमारे भारतवर्ष में जैसे सब्जीवाले अपनी-अपनी दुकानदारी चलाते है उसी प्रकार पोर्टल वाले लोगों को खुश करने के लिए मख्खन लगा-लगा कर समाचार प्रकाशित करते है। क्या भारत सरकार ऐसे लोगों पर अंकुश लगा पायेगी जबकि सुचना प्रशारण मंत्री के द्वारा पूर्व में कहा गया है कि पोर्टल वाले जिला जनसंर्पक को किसी की नियुक्ति पत्र नहीं दे सकते, ना ही प्रतिनिधि कार्ड दे सकते, ना इनका समाचार का कोई महत्व है। पर यह देखने को मिलता है कि कोई काम हो जाता है तो अपने पोर्टल पर चढ़ाते है कि खबर कैसा है? जब कि मंत्री महोदय के द्वारा कहा गया है कि जिसके पास आर. एर्न. आइ. नम्बर होगा वहीं पोर्टल मान्य होंगे। देखने को मिलता है कि लोग अपने गुट बनाकर पोर्टल वाले अधिकारियों पर दबाव देकर व माइक पर इंटरव्यू लेते है वह सरासर गलत है उनको कोई अधिकार नहीं है। ऐसे भी देखने को मिला है राष्ट्र त्यौहारों पर फर्जी ढ़ंग से विज्ञापनों का प्रकाशन करना पैसा वसूलना इन लोगों के लिए आम बात हांे चुकी है। अभी हाल ही में पुलिस विभाग को निर्देश मिला है कि फर्जी पत्रकारों की जाँच की जाये। इस संबंध में भारतीय प्रेस परिषद को निगरानी रखना अति आवश्यक है जिससे ईमानदार पत्रकारों की छवि बच सके।