बैकुण्ठपुर में ठेकेदारों का संख्या बढ़ता ही जा रहा है। आप जिस विभाग में देखिए उसी विभाग में अनेको ठेकेदार पायेंगे। क्योंकि ठेकेदारी में ही ज्यादा प्रोफिट है। देखा जाये तो रोड, पानी का टंकी या बिल्डिंग बनायें, परंतु उनके बिल निकलने तक और अधिकारी को कमिशन लेने तक काम ठीक दिखना चाहिए।
वही हर विभाग में नये-नये ठेकेदार पाये जा रहे है। पूर्व में कांग्रेस से जुड़े हुए ठेकेदार भी कुछ ही दिनों में करोड़ों के आसामी हो चुके है। आज भी उनके कारनामों को बागलोग विधायक के नाम से बखूबी जानते है। इसी प्रकार अब नयी पीढ़ी के ठेकेदार पैदा हो चुके है। मौके पर डबरीपारा वार्ड नं. 14 व बाजारपारा बैकुण्ठपुर नगर पालिका का रोड का काम देखा जा सकता है। जो हाल ही में निर्माण हुई थी पर गिट्टियां दिखने लगी है। इस संबंध में बैकुण्ठपुर नगर पालिका के सी.एम.ओ. को बार-बार अवगत कराया गया है पर नया-नया अधिकारी बना है तो वो किसी को समझता ही नहीं है। क्योंकि सी.एम.ओ. अपने काम के लिए सक्रिये नहीं है। बताया जाता है कि, अपने गाड़ी के लिए नगर पालिका का कई कर्मचारी को ड्रायवर बनाकर रख लेता है।
बैकुण्ठपुर के जितने भी कार्य हुए है वह नगर पालिका पार्षद या नगर पालिका अंडरमेन ने काम किये है। अधिकारियों को परमानंेट बैकुण्ठपुर में नहीं रहना, इसलिए काम कैसा भी हो अधिकारी को कमिशन चाहिए। क्योंकि बिना कमिशन के उनका गुजारा नहीं होता। इस संबंध में उच्च अधिकारी भी समझते है कि, अधिकारी ठेकेदार से कमिशन लेते है।
सूत्र बताते है कि, पी.एच.ई. में एक एस.डी.ओ. अपना ऐसा व्यक्तव्य देते है कि, हमको एक लाख सेे ऊपर वेतन मिलता है और हमारे परिवारों के लोगों को लगभग 4-5 लाख महीना मिलता है तो हमें किस बात की चिंता होगी। ऐसे अधिकारी को अपने पद को छोड़कर एक जंगल में तपस्या करना चाहिए। जबकि ठेकेदारों से लगभग 5-8 प्रतिशत तक कमिशन भी छोड़ा नहीं जाता। ऐसे भ्रष्ट अधिकारी और लम्बी-लम्बी बात फेकने वाले अधिकारी को फेंकु अधिकारी भी कहा जा सकता है।
पूरे हिन्दुस्तान में ऐसा एक भी अधिकारी उजागर कर दें कि, मैं ईमानदार हूँ और उनका मिशाल भी दें। आज जिनकी लगभग उम्र 25-26 वर्ष के नये ठेकेदार पैदा हो गये है हो वह क्या ठेकेदार करेंगे इन ठेकेदारों के सामने तो लगभग 50-60 वर्ष के ठेकेदार आदमी भी शर्माऐंगा। सूत्र बताते है कि, जो जांच करने आते है उनको भी कमिशन चाहिए। उनको कोई मतलब नहीं कि, जांच में गलत है या सही।
बताया जाता है कि, चाहे काम अच्छा हो या घटिया सरकार व शासन जानबूझकर अधिकारियों को जांच करने का एक बहाना देती है ताकि काम में से पैसा निकाला जा सके। वही अधिकारी आज-कल के नयी पीढ़ी के ठेकेदारों को पंसद करते है। इससे प्रतीत होता है कि, अधिकारी अनुभवविहीन है या तो अपने कमिशन के चक्कर में नये ठेकेदारों से घटिया काम करा रहे है। उनको कोई मतलब नहीं की काम अच्छा हो या नहीं। ऐसे अधिकारी को सरकार द्वारा जांच कर उनके पदों से हटा देना चाहिए एवं उनकी सम्पत्ति की जांच भी करना चाहिए।