सूरजपुर के समीप ब्लाॅक ओड़गी में जनपद पंचायत के बाबू से लेकर अधिकारी तक कमिशनखोरी जोरो-शोरो पर चल रही है। बताया जाता है कि, मनरेगा में मास्टररोल भी एक-एक परिवार से चार-चार आदमियों के नाम पर बिना काम किये भरा जाता रहा है। क्योंकि काम करना कोई आवश्यक नहीं है, बस खाली हाजरी भर देना है। जिससे हाजरी का आधा पैसा हाजरी भरने वालों का होता है।
जानकार सूत्र बताते है कि, इसी प्रकार जनपद पंचायत ओड़गी में बाबू के पद पर बैठकर चैबे जी द्वारा सचिवों से काम के नाम पर या अधिकारी के नाम से पैसा निकाल रहे है। यहां तक की कुछ लोगों में चर्चा है कि, काम के एवज में अधिकारी भी पैसा की मांग करते है और पैसा भी लेते है। क्योंकि ऐसे अधिकारी ब्लाॅक क्षेत्रवाद की बात करते है कि, ब्लाॅक के पत्रकारों को हम पैसा देते है उनको यह नहीं मालूम की अपने पेपर का संपादक हिन्दुस्तान के किसी भी स्थान का क्षमता रखता है।
ओड़गी ब्लाॅक में संघ के नाम पर एक कोठरी में एक टेबल-कुर्सी डालकर अधिकारी से पैसा लूटने का अधिकार किसने दिया ? क्योंकि समाचार पत्र के संपादक ऐसे अनभिज्ञ जिनको लिखने का कोई भी ज्ञान नहीं उनको दो-दो हजार रूपये देकर कार्ड बना दिया गया है। जिससे उस कार्ड को दिखाकर पत्रकार पैसा वसूलते है। जैसे रेलवे का टीकट टी.टी. को दिखाते है वैसे ही वे अपना समाचार पत्र का संवादाता पत्र दिखाते है। उन कार्ड को लेकर ब्लाॅक के पत्रकार फुले नहीं समाते है। जैसे- सोमवार को लेबर के कार्य के लिए झुण्ड बनाकर खडे़ हो जाते है वैसे ही पत्रकारिता के नाम पर पत्रकार खड़े हो जाते है और व्हाट्सएप पर फोटो दिखाते है। जिससे अधिकारी प्रभावित हो सके और जिससे हमारी पहचान बने।
बताया जाता है कि, ओड़गी ब्लाॅक में विकासखण्ड अधिकारी, महिला बाल विकास, तहसील विभाग, आदिम जातिम सहकारी सहमतियां व अन्य विभाग पूरा ब्लाॅक ही भ्रष्टाचारी में डुबा हुआ है। जानकार सूत्र बताते है कि, महिला बाल विकास के कार्यकर्ताओं द्वारा दलिया बेचने का प्रचलन पैदा हो गया है जो बच्चे की जगह जानवर खाते है। इनकी जितनी कमियां बतायी जाये वह कम है।
जानकार सूत्र बताते है कि, सरकारी स्वास्थ्य विभाग में भी डाॅक्टरों द्वारा ईलाज के नाम पर पैसा लिया जाता है। डाॅक्टरों द्वारा मरीजों से कहा जाता कि, अच्छा दवा लेना है तो पैसा दीजिए अन्यथा बाजार से खरीद लिजिए। जानकार सूत्र बताते है कि, शासकीय दवाईयों एवं कुछ डिस्पेंसरी के सामान भी बाजार में बेचे जाते है। इस प्रकार ब्लाॅक में लूट बना हुआ है।
वही ओड़गी के अनपढ़ पत्रकारो को पत्रकारिता के नाम पर पैसा देते है। जब इस संबंध में एक प्रबुद्ध लोग क्षेत्रों में भ्रमण करते है तो ऐसे वरिष्ठ पत्रकारों पर उंगली उठाते है जबकि उनको यह नहीं मालूम की पूरे हिन्दुस्तान में अपने पेपर का संपादक जानकारी इक्कठा कर सकता है। पर बुद्धि की कमी के कारण ऐसे पत्रकार कहलाने वाले ज्ञान की बात व पत्रकार की बात नहीं सुनते। क्योंकि उनको इस बात का ज्ञान ही नही,ं बस शाम के वक्त रूम में पत्रकारों द्वारा वसूली की गयी पैसे से दारू और चिखना खाकर मस्त हो जाते है। पत्रकारिता तो एक बहाना है इसकी आड़ में अन्य काम भी किये जाते है। बताया जाता है कि, कुछ अधिकारी व पुलिसकर्मी भी भयभित होकर उंगली नहीं उठाते है।
लोगों का कहना है कि, कुछ जगह ऐसा भी जाना जाता है कि, पुलिसकर्मी ही मार्दक पदार्थ में लिप्त रहते है। ऐसे ही एक पुलिसकर्मी लाखों की गाड़ी और करोड़ों का मकान नहीं बना सकता। यह एक समाज में प्रश्नवाचक बन चुका है।