छत्तीसगढ़: किसे CM चुनेगी कांग्रेस, कई कद्दावर नेताओं की मौजूदगी से कठिन हुई लड़ाई
15 साल से राज्य में काबिज रमन सिंह की सरकार हटाने के बाद अब कांग्रेस के सामने मुख्य चुनौती सीएम कैंडिडेट चुनने की है. ये शायद इकलौता राज्य है जहां कांग्रेस के पास कई कद्दावर चेहरे हैं जिनमें से किसी एक पर पार्टी दांव खेल सकती है.
त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव
राज्य में टीएस बाबा के नाम से मशहूर 66 साल के सिंहदेव छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. वह अंबिकापुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं. अविभाजित मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्य सचिव एमएस सिंहदेव के बेटे टीएस सिंहदेव का ताल्लुक सरगुजा रियासत से है. सरगुजा जिले में उनका अच्छा खासा दखल और लोकप्रियता है. इसका पता ऐसे भी चलता है कि इलाके की आठ विधान सभा सीटों में पिछली बार कांग्रेस ने सात सीटें जीती थीं. पढ़े-लिखे, सौम्य सिंहदेव को अंदरूनी सर्वे में 24 फीसदी वोट मिले थे.
भूपेश बघेल
पाटन से विधायक 57 साल के पटेल छत्तीसगढ़ विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हैं. पिछड़ी जाति के नेता बघेल ने दिग्विजय सिंह और अजित जोगी दोनों के मंत्रिमंडल में काम किया है. यानी वो अविभाजित मध्य प्रदेश और उसके बाद छत्तीसगढ़ में मंत्री रहे हैं. सामाजिक सुधार के कामों से जुड़े बघेल राज्य में पदयात्रा कर चुके हैं. उन्होंने संगठन के स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया है. चुनाव के समय बघेल लगातार पूरे छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार करते रहे. हालांकि पार्टी के अंदरूनी लोगों को मानना है कि गुटों में बंटी कांग्रेस में सभी धड़ों को वो स्वीकार्य नहीं होंगे.
ताम्रध्वज साहू
दुर्ग से सांसद 69 साल के साहू का कृषि से नाता रहा है. वो 2000 से 2003 तक अजीत जोगी सरकार में मंत्री थे. कोयला और इस्पात की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी के वो सदस्य हैं. इसके अलावा पेट्रोलियम और नेचुरल गैस मिनिस्ट्री की परामर्श समिति के वो सदस्य हैं. वो साहू समुदाय के अध्यक्ष भी रहे हैं. छत्तीगढ़ के ओबीसी में इस समुदाय की तादाद काफी ज्यादा है. उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. ऐसे में डार्क हॉर्स के तौर पर उनका नाम है.
चरणदास महंत
63 साल के चरणदास महंत ओबीसी नेता हैं. दिग्विजय सरकार में वो 1993 और 1998 में मंत्री रहे हैं. उसके बाद मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री बने. मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री के बेटे महंत बहुत पढ़े-लिखे लोगों में गिने जाते हैं. कोरबा से वो तीन बार लोक सभा सदस्य रहे हैं. संसद की तमाम समितियों के सदस्य रहे हैं. 2008 में उन्होंने पीसीसी अध्यक्ष बनाया गया. लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी चुनाव हार गई.