कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू किया था. मामलों में कमी न आते देख सरकार ने लॉकडाउन की अवधि 14 अप्रैल से 3 मई तक बढ़ा दी. रेल, बस और विमान सेवाएं बंद कर दी गईं. वजह यह थी कि परिवहन के साधनों के अभाव में लोगों का एक से दूसरी जगह जाना नहीं होगा, लेकिन अब प्रवासियों के घर लौटने के लिए महापलायन का एक नया रूप दिखाई दे रहा है.
लॉकडाउन 2 में प्रवासियों के पलायन की यह रफ्तार और तेज हो रही है. लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है. इस बार लोग पैदल से कहीं ज्यादा साइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं. हर दिन हजारों की तादाद में उत्तर प्रदेश से गुजरने वाले यह साइकल सवार हजारों किलोमीटर की यात्रा कर अपने घर और गांव पहुंचने की जुगत में हैं. लखनऊ-गोरखपुर हाईवे पर आजतक की टीम ने ऐसे कई साइकिल सवारों को देखा, जो पश्चिमी भारत खासकर पंजाब और दिल्ली से अपनी साइकिल लेकर सुदूर बिहार के गांव की ओर निकल पड़े हैं.
कई-कई दिन तक साइकिल की सवारी कर ये लोग अपने गांव पहुंच रहे हैं. दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में पेंटर का काम कर पेट पालने वाले बिहार के मोतिहारी निवासी मजदूरों ने पहला लॉकडाउन तो वहीं रहकर जैसे-तैसे झेल लिया, लेकिन लॉकडाउन 2 में निकल पड़े अपने गांव के लिए. चार दिन में दो साइकिल से सफर कर लखनऊ पहुंचे इन चार मुसाफिरों को विश्वास है कि वे और चार से पांच दिन में मोतिहारी पहुंच जाएंगे.
सफर की मुश्किलों पर बात करते हुए इन मुसाफिरों ने बताया कि खाने के लिए भी पास कुछ बचा नहीं है. राह चलते स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से कुछ मिल जाता है तो खा लेते हैं. रात के समय सड़क किनारे रैन बसेरों में या सड़कों पर ही सो जाते हैं. फिर सुबह उठते ही निकल पड़ते हैं अपने सफर पर. इतनी समस्याएं झेलते हुए, हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी साइकिल पर तय करने की विवशता के बावजूद ये हालात की गंभीरता को समझते हैं.
बिहार के निवासी इन प्रवासी मजदूरों को पीएम मोदी से कोई शिकायत नहीं है. वे कहते हैं कि यह अमीरों की लाई हुई बीमारी है. प्रधानमंत्री हमें बचाने के लिए इतने कड़े फैसले ले रहे हैं. सबने बस सुरक्षित घर पहुंच जाने को अपना लक्ष्य बताया और वापसी के सवाल पर कहा कि सब कुछ सामान्य रहा तभी लौटेंगे. नहीं तो हम गांव में ही रहकर जी लेंगे