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छत्तीसगढ़ में खोदाई कराई गई तो सुरंग टीला मंदिर आया सामने …

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रायपुर। इतिहास के पन्नों को अगर पलट कर देखें तो आज से करीब 17 सौ साल पहले छत्तीसगढ़ को दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था। प्राचीन मगध साम्राज्य के दौर में जिन 16 महाजनपदों का उल्लेख समकालीन साहित्यों में मिलता है, उनमें से दक्षिण कौशल एक महाजनपद थी। कालान्तर में सोमवंशीय राजाओं ने सिरपुर को अपने राज्य की राजधानी बनाया। कहा जाता है कि 7वीं सताब्दी के दौरान सिरपुर को राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था और यह शहर उस दौर में अपने वैभव के लिए जाना जाता था। इतिहासकारों का मानना है कि 11वीं सदी में महानदी घाटी में एक भीषण भूकंप आया और इस घाटी की सबसे बड़ी बसाहट यानी सिरपुर नगरी पूरी तरह तबाह हो गई। इसी दौरान नदी के तट पर एक टीला उभर आया। कालान्तर में यह टीला एक छोटी पहाड़ी जैसा बन गया, जिसपर पेड़ पौधे उग गए थे। आज से सिर्फ 13 साल पहले एक पुरातत्ववेता को यहां कुछ दबे होने की आशंका हुई। खोदाई कराई गई और फिर सुरंग टीला मंदिर सामने आया। इस मंदिर के निर्मांण और वास्तुकला से जुड़ी कहानी बेहद रोचक है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर सिरपुर में सातवीं सदी का यह मंदिर हाल ही में खुदाई में बाहर आया है।

सुरंगटीला नाम से पहचाने जाने वाले इस मंदिर कॉम्प्लेक्स की वास्तुकला किसी को भी आश्चर्य में डाल सकती है। पंचायतन शैली के इस विशाल मंदिर का निर्मांण बड़े-बड़े पत्थरों को एक-दूसरे के ऊपर रख कर किया गया है और इन पत्थरों की जोड़ाई प्राचीन आयुर्वेदिक निर्मांण पद्धती से तैसार मसाले से की गई है। इस मंदिर के निर्मांण के लिए जो तकनीक अपनाई गई थी वह प्राचीन वास्तुशास्त्री मयासूर की लिखी पुस्तक ‘मयमतम” पर आधारित मानी जाती है। मयासूर, रावण के ससुर थे और उनके वास्तु शास्त्र के आधार पर ही लंका नगरी सहित कई प्राचीन शहरों का निर्मांण हुआ था। मंदिर की खोदाई कराने वाले पुरातत्ववेत्ता अरूण शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर का निर्मांण मयमतम में बताई गई तकनीक के अनुरूप ही कराया गया था। 32 स्तंभों पर स्थापित पंचायतन शैली का यह मंदिर एक ऊंचे जगत पर स्थापित है। यह मंदिर देश में सबसे ऊंचे जगत पर स्थापित मंदिर भी माना जाता है। इस जगत पर चार शिवलिंग और गणेश भगवान का एक मंदिर स्थित है। यह चार शिवलिंग काले, सफेद, लाल और पीले पत्थरों से बने हैं।

मंदिर के निर्मांण के लिए सुरंगनुमा पीलर बनाए गए थे, जो जमीन में करीब 80 फीट तक अंदर घंसे हुए हैं और एक एयर पॉकिट का निर्मांण करते हैं, जिससे मंदिर की इमारत पर भूकंप का असर नहीं होता। जब टीले की खोदाई की गई और मंदिर को बाहर निकाला गया तो इसकी सीढ़ियों पर भूकंप से आए मोड़ के निशान साफ नजर आए। छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी के तट पर इशान कोण में स्थापित सुरंग टीला मंदिर का निर्मांण सातवीं सताब्दी में सोमवंशीय राजा महाशिवगुप्त बालार्जुन ने कराया था। इस मंदिर के निर्मांण के लिए विशाल पत्थरों और आयुर्वेदिक गारे का उपयोग किया गया था। इस गारे के निर्मांण की विधि मयासूर के मयमतम में बताई गई है। इसके साथ ही इस भवन को बनाने के लिए भूकंप रोधी तकनीक भी इस्तेमाल की गई थी। मयमतम में बताए गए इस गारे के निर्मांण विधि में आठ तरह की चीजों- बबूल की गोंद, पुराना गुड़, अलसी, सरसों, चूना, बेल का गूदा, पलास का गोंद और पानी का उपयोग किया गया था। सातवीं शताब्दी का यह मंदिर अस्तित्व से गायब हो चुका था। समय के साथ यह मंदिर जमीन में दफन हो चुका था। सिरपुर में महानदी के किनारे साल 2006 से पहले सिर्फ मिट्टी का एक विशाल टीला नजर आता था। यह एक छोटी पहाड़ी की शक्ल में था, जिसमें झाड़ियां उगी हुई थीं। पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री अस्र्ण शर्मा ने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि इस जगह पर कोई विशाल निर्मांण कॉम्प्लेक्स दफन है। इसके बाद उनकी देख-रेख में इस जगह की खुदाई शुरू हुई और यह विशाल मंदिर वापस प्रकट हुआ।

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