रायपुर। प्रदेश में पान की फसल तैयार कर रहे किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। आइजीकेवी के वैज्ञानिकों ने ग्रीन शेड़ के माध्यम से अन्य राज्यों के कई वैरायटी की बेहतर पैदावार करने में सफलता पायी है। इससे अन्य राज्यों की चर्चित पान की खेती का रकबा जिले में बढ़ेगा, वहीं किसानों की आय भी दुगना होगी। प्रोजेक्ट से जुड़ी वैज्ञानिक का कहना है कि पालीहाउस, रस्सी की तकनीक के बदले ग्रीन शेड़ में पान के पत्ते अधिक तैयार होंगे। रिसर्च के दौरान देखा गया है कि इस तकनीक में सभी प्रजातियों में पत्ते अधिक तैयार हो रहे। पत्तों में पाए जा रहे उनके मूलगुणधर्म में बहुत अधिक अंतर नहीं है। स्थानीय रामटेक कपूरी पान के अलावा बचीगुड़ी पान (ओडिशा) उत्कल सुदामा (ओडिशा) बालीपान (ओडिशा) के पत्ते सुख नहीं रहे।
पान में 60 पत्ते लगे
प्रमुख तौर पर ठंड या अधिक बरसात वाले क्षेत्रों में तैयार होती है। जिससे अंबिकापुर, राजनंदगांव, मैनपाट सहित बस्तर का कुछ क्षेत्र का मौसम इस फसल के अनुकूल है। वहीं ग्रीन शेड़ में पान की फसल लेने पर यहां का तापमान 20 से 35 सेल्सीयएस, आर्दता में 60 से 65 फीसद पाया गया। इसके अलावा अधिकांश वैरायटी में पान पत्ते लगभग 60 से अधिक तैयार हो रहे है। जबकि इसके पहले अन्य दोनो तकनीक में यह स्थिति नहीं थी। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के पान की लगभग 10 प्रजातियों के रिसर्च में यह बात सामने आई है।
अन्य तकनीक में नहीं मिली सफलता
2015-16 में नेशनल हॉल्टीकल्चर मिशन के तहत प्लांट फिजियोलॉजी, एग्री बायो-केमिस्ट्री मेडिसिनल एरोमेट्रिक प्लांट विभाग में प्रोजेक्ट मिला था, लेकिन पान की खेती दावे के अनुरूप तैयार नहीं हो पाई। जबकि शोध वैज्ञानिकों ने प्रोजेक्ट के दौरान पुरानी पद्घति के बदले कुछ वर्ष पहले पॉलीहाउस, रस्सी के सहारे पान की पैदर शुरू किया था।
ग्रीन शेड़ में पान की खेती
पान की खेती संरक्षित खेती के तौर पर की जाती है। पान की खेती के लिए अच्छी जलवायु महत्त्वपूर्ण है। समय-समय पर पौधों का कटिंग, बांस की फट्टी के सहारे रस्सी से बांधकर रखना जैसे महत्तवपूर्ण होता है। अच्छी पैदावार सिर्फ जमीन पर बरेजा बनाने से हो सकती है। बाकी पद्घति में बेहतर पैदावार नहीं की जा सकती है।