रायपुर। छत्तीसगढ़ के गोठानों में तैयार गोबर के दीयों से अब गंगा घाट जगमग होंगे। गंगा में दीपदान की रस्म के लिए छत्तीसगढ़ के इन खास दीयों की मांग लगातार बढ़ रही है। प्रयागराज से मिली मांग पर 21 सौ दीयों की पहली खेप भेजी गई है। वाराणसी और हरिद्वार में भी दीयों की आपूर्ति की संभावना तलाशी जा रही है। इन दियों की मांग इस कारण भी हो रही है क्योंकि पत्तों पर दीये जलाकर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा में ये दीये समूल जल कर खुद भी भस्म में परिवर्तित हो जाते हैं। रायपुर के आदर्श गोठान वनचरौदा में बने ये दीये पानी में घुलनशील भी हैं। साथ ही पर्यावरण हितैषी भी हैं। इसे देखते हुए अब गंगा घाटों पर दीपदान के दौरान इन दीयों का प्रयोग तेजी के साथ बढ़ रहा है।
रायपुर जिला पंचायत के अकिारी गोठानों में कार्य कर रहीं स्वसहायता समूह की महिलाओं को इस कार्य के लिए प्रोत्साहन कर रहे हैं, ताकि मांग के अनुरूप दीये की आपूर्ति की जा सके। दीया लंबे समय तक जले, इसके लिए उसका स्वरूप बदला जा रहा है। जिला पंचायत रायपुर के सीईओ डॉ. गौरव सिंह का कहना है कि गोबर के दीये की मांग दीपावली के समय हरदोई, प्रयागराज से दीपदान के लिए बहुत आई थी। ट्रायल के रूप में 21 सौ दीये प्रयागराज स्थित एक धार्मिक संगठन को भेजे गए। इसी तरह से बनारस, प्रयागराज जैसे घाटों पर दीपदान के लिए दीयों के उपयोग की चर्चा चल रही है। गोबर के दीये का प्रयोग सफल रहा तो विभाग को एक बड़ी संख्या में दीये तैयार करना होगा। इससे योजना से जुड़ी समूह की महिलाओं की आय बढ़ने के साथ ही बड़ा मार्केट तैयार होगा। ट्रायल में सफलता मिली तो 21 नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों में यह संख्या लाखों में हो जाएगी। शुरुआती दौर में गोबर के दीये को जलाने के लिए तेल का उपयोग किया गया। दीये में लंबी अवधि तक रोशनी बनी रहे, इसलिए तेल के बजाए मोम, बत्ती का उपयोग कर दीये को नया रूप दिया गया है।