महासमुन्द। शहर में तीन साल पहले तक बैलगाड़ियां रेलवे रैक पॉइंट से एफसीआई के गोदाम में खाद्यान्न लाते ले जाते नजर आती थीं। गाड़ीवानों के पास काम की कमी नहीं थी। गाड़ीवान यूनियन मजबूत था। इन्हें परिवहन का भरपूर काम मिलता था। गाड़ीवान हर सुबह बैलों को तैयार कर सजा कर गाड़ी में फांदते थे और गाड़ी चल पड़ती थी मजदूरी कमाने। सब कुछ अच्छा चल रहा था, सैकड़ों मजदूर परिवार इस रोजगार से जुड़े थे, दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो रहा था। पर अब ऐसी स्थिति नहीं है।
एफसीआई का एक आदेश आया और गाड़ीवानों से उनका वर्षों पुराना रोजगार छीन गया। एफसीआई ने गाड़ीवानों से लोडिंग अनलोडिंग का काम बंद करा दिया। इस आदेश के खिलाफ शहर में प्रदर्शन हुए, गाड़ीवानों ने जेल भरो प्रदर्शन किया। तमाम विरोध प्रदर्शन आंदोलन के बाद भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकला और बीते तीन साल से गाड़ीवानों का परिवार पुराने धंधे को छोड़कर अब कहीं और रोजी-मजदूरी कर गुजारा करने मजबूर हैं। बैलगाड़ी बन्द हुई तो बैलों को पालना कठिन हो गया। बैल बिक गए। सिर्फ गाड़ियां रह गई। अब गाड़ीवानों की गाड़ियों पर विज्ञापन एजेंसियों की नजर है। बैल बिना गाड़ियां खरीदी जा रही है। और इन गाड़ियों का उपयोग गतिशील प्रचार स्टैंड के तौर पर किया जाने लगा है। विज्ञापन एजेंसियों ने इस ढांचे का उपयोग किया और प्रचार पोस्टर लगाकर धन अर्जन के लायक तैयार किया। तीन दशक तक गाड़ीवान रहे लाला निषाद अब ठेले में आलू प्याज बेचते हैं।
लाला का कहना है कि एक दौर बीत गया। न जाने किसकी नजर लगी और वर्षों का रोजगार मिनटों में छीन गया। आज भी बैल बिना गाड़ियों को देखकर दर्द होता है। आधा जीवन बीतने के बाद अब उन्हें दूसरे रोजगार की ओर रुख करना पड़ा। लाला का कहना है कि सरकार कहती है कि प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रदूषण को कम करना है, लेकिन ईंधन चलित वाहन कम होने के बजाए बढ़ते जा रहे हैं, वहीं पूर्णतः पर्यावरण हितैषी और गैर ईंधन चलित बैलगाड़ियां बन्द कर दी गई। आज परिवहन के काम मे ट्रकें लग गई है, जो रोज प्रदूषण फैला रही है। निषाद ने कहा कि बैलगाड़ियां ईकोफ्रैंडली थी। इससे बैलों की भी पूछ परख थी। गौधन का संवर्धन था, खेती से परे परिवहन में गोधन से काम लिया जा रहा था, लेकिन अब यह भी नहीं रहा।