अंबिकापुर । रेणुकूट, बनारस, गढ़वा, रेहला, डाल्टेनगंज… की गाड़ी इतने बजे रवाना होगी। यात्री अपनी-अपनी बसों में सवार हो जाएं… सरगुजा संभाग मुख्यालय के बस स्टैंड में पिछले 44 वर्षों से यह आवाज गूंज रही है, जिसे हर यात्री पहचानता है। यह आवाज है राजेन्द्र माली की जो वर्ष 1976 में पड़ोसी प्रांत से अंबिकापुर पहुंचा और दो-चार बसों में सुबह-सुबह फूल लगाने का काम करता था जो बाद में बकायदे बीच बस स्टैंड में खटिया लगाकर यात्रियों को बसों की जानकारी चिल्ला-चिल्लाकर देता था। राजेन्द्र माली की आवाज हर किसी को आकर्षित करती है। दमदार आवाज और गाड़ी के नंबर और गंतव्य क्षेत्र की क्षेत्र के गांव की व प्रांतों की जानकारी जिस अंदाज में वे देते हैं हर किसी को आकर्षित कर लेते हैं।
राजेन्द्र की आर्थिक स्थिति इतने वर्षों में नहीं सुधरी पर संभाग मुख्यालय के बस स्टैंड की पहचान के साथ तीसरी आंख जरुर बन चुका है। 44 साल से अंबिकापुर के बस स्टैंड में अपनी आवाज से यात्रियों की मदद करने के एवज में उन्हें चंद रुपए ही मिलता है जिससे परिवार का पेट पालना भी मुश्किल होता है किंतु राजेन्द्र माली काम नहीं छोड़ा। नगर का बस स्टैंड बदल गया, जगह बदल गई, नया माहौल बन गया पर राजेंद्र माली ने बस स्टैंड को नहीं छोड़ा। बस स्टैंड राजेन्द्र माली की पहचान है। हजारों यात्री यहां हर रोज पहुंचते हैं पर बसों की आवाजाही की सही जानकारी राजेन्द्र माली से ही प्राप्त करते हैं। राजेंद्र माली कभी भी किसी यात्री से दुर्व्यवहार नहीं करता और न ही किसी को गलत जानकारी देता है। कौन सी बस किस रूट में, किस समय जाएगी और कितने बजे आएगी, किस रूट में कहां-कहां कितने बजे रुकेगी एक-एक जानकारी राजेंद्र माली को है। अपने जीवन के कई दशक यात्रियों के बीच बिताने वाले राजेंद्र माली का कहना है अब तो बस स्टैंड ही मेरी जिंदगी है।
बस स्टैंड के यात्रियों को भी मैं पहचान चुका हूं कि कौन किस रुट में कितने बजे किस बस से जाएंगे। कुछ यात्रियों से तो मेरा मित्रवत व्यवहार है। बस जीवन में कुछ मिला नहीं तो वह है पैसा। 1976 में जब अंबिकापुर के पुराने बस स्टैंड में राजेन्द्र माली ने फूल लगाने का काम शुरू किया तो मात्र सात बसें चलती थीं जिसमें रोडवेज ट्रांसपोर्ट की सर्वाधिक बसें थी। बाद में जनता ट्रांसपोर्ट, सरगुजा ट्रांसपोर्ट व राज्य परिवहन की बसें चलने लगीं। राजेंद्र बस मालिकों को बनते और बिगड़ते देखा है। जब उन्होंने बस स्टैंड में यात्रियों के लिए चिल्ला-चिल्लाकर हॉकर का काम शुरु किया तब अंबिकापुर से सात बसें चलती थी। बसों के मालिक भी कम थे। अब सैकड़ों मालिक हैं और साढ़े चार सौ बसें हर रोज संभाग मुख्यालय की इस बस स्टैंड से आवागमन कर रही हैं। राजेन्द्र ने कई बस मालिकों का आर्थिक उतार-चढ़ाव देखा है। कई पुराने बस मालिकों ने बसों के कंडम होने के बाद इस धंधे से ही किनारा कर लिया। वर्षों से लोग इस शख्स को हाथ में एक डंडा और कुर्ता पायजामा के साथ देख रहे हैं। न हाथ से डंडा हटा न तन से कुर्ता पायजामा।
जब जवान थे तब बस स्टैंड में बगैर माइक के आवाज गूंजती थी। अब बुढ़ापे में भी आवाज में कोई कमी नहीं आई है। बस स्टैंड का हर दुकानदार, हर अधिकारी-कर्मचारी इस शख्स को जानता है। बस स्टैंड की हर छोटी-बड़ी गतिविधियों की जानकारी राजेन्द्र माली को हर पर कभी किसी विवाद का सामना करना नहीं पड़ा। राजेन्द्र माली बस स्टैंड के तीसरी आंख की तरह हैं जिसकी नजर से कोई नहीं बच पाता। पांच वर्ष पूर्व पुराने बस स्टैंड में तेज आवाज में बसों के गंतव्य क्षेत्र का नाम अपनी अंदाज में बताते तत्कालीन कलेक्टर आर. प्रसन्ना ने सुनी तो बुलाकर लंबी चर्चा की। कलेक्टर इतने प्रभावित हुए कि प्रतीक्षा बस स्टैंड में शिफ्टिंग के दौरान यह भरोसा दिया था कि अब तेज आवाज में उसे गला खराब नहीं करना पड़ेगा। बस स्टैंड में जो माइक लगेगी उसकी जिम्मेदारी राजेन्द्र माली को ही मिलेगी पर उनके स्थानांतरण के बाद दूसरे अधिकारी ने इसकी पहल नहीं की। पुलिस सहायता केन्द्र बनने के बाद माइक से सूचना देने का काम पुलिसकर्मी ही करने लगे। तत्कालीन कलेक्टर प्रसन्ना ने राजेन्द्र माली को मानदेय देने का भी आश्वासन दिया था।