अंबिकापुर । कभी नक्सलियों की शरण स्थली के रूप में चर्चित बलरामपुर जिले का कोठली जंगल इन दिनों लकड़ी तस्करों के निशाने पर है। ग्रामीण वन भूमि पर कब्जे के लिए बड़े पैमाने पर साल के वृक्षों की अवैध कटाई कर रहे हैं और ग्रामीणों की आड़ में लकड़ी तस्करों द्वारा बेशकीमती लकड़ियों को पार किया जा रहा है। सुरक्षा कारणों से वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी इस क्षेत्र में कभी जाते ही नहीं है। कोठली का जंगल अब विरान नजर आने लगा है। सैकड़ों ठूंठ और जगह जगह काट कर रखी गई बेशकीमती लकड़ियां बयां कर रही है कि इस जंगल का भविष्य सुरक्षित नहीं है । जंगल के सफाई के साथ वन भूमि पर कब्जा भी धड़ल्ले से हो रहा है। बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत कोठली से लगा जंगल एक दौर में काफी घना हुआ करता था।
यहां साल के बड़े-बड़े वृक्ष मौजूद थे। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इस जंगल को नक्सलियों के पनाहगार के रूप में माना जाता था क्योंकि नक्सली भी अपने आप को यहां सुरक्षित मानते थे। दुर्गम इलाका और घना जंगल होने के कारण इसे नक्सलियों की शरण स्थली के रूप में पुलिस भी जानती थी। उस दौर में लोगों की आवाजाही कम थी यही वजह है कि जंगल सुरक्षित थे। नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलने और बड़े ओहदेदारों के पकड़े जाने अथवा मुठभेड़ में नक्सलियों के मारे जाने के बाद धीरे-धीरे धीरे बाहरी लोगों का आवागमन इस क्षेत्र में शुरू हुआ था। वर्तमान में बलरामपुर जिले में नक्सली गतिविधियां पूरी तरीके से शांत हो चुकी हैं ।ऐसे में लकड़ी तस्करों को आसान मौका मिल गया है।वनभूमि पर कब्जे की लालच में ग्रामीणों द्वारा अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई की सूचना मिलते ही लकड़ी तस्करों ने इलाके में अपनी सक्रियता बढा दी। ग्रामीणों को आगे कर लकड़ी तस्करों द्वारा काटे जा रहे साल के पेड़ों की बेशकीमती लकड़ियों को खपाया जा रहा है।
जंगल साफ करने के बाद ग्रामीण उसमे खेती कर रहे है।उन्हें पूरा विश्वास है कि वनभूमि का पट्टा मिल जाएगा, क्योंकि इसी तर्ज पर जंगल मे कब्जा करने वाले लोगों को वन विभाग द्वारा पट्टा भी वितरित किया जा चुका है।धीरे-धीरे यह जंगल अब वीरान नजर आने लगा है। कोठली के जंगल को शरणस्थली के रूप में उपयोग कर चुके नक्सलियों द्वारा एक दौर में पुलिस की गश्ती दल पर हमला किया गया था। कोठली में पुलिस व नक्सलियों के बीच दो बार हुए मुठभेड़ में नक्सलियों को मुंह की खानी पड़ी थी। दोनों बार नक्सली मारे गए थे। इन दोनों मुठभेड़ का नेतृत्व करने वाले शंकरगढ़ के तत्कालीन थाना प्रभारियों को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी दिया गया था। इलाका पूरी तरह से शांत हो चुका है।कोठली होकर ही बलरामपुर जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल पवई फाल लोग आना जाना करते है,लेकिन वन विभाग का अमला इस क्षेत्र में कभी निरीक्षण पर नही जाता इसी का फायदा ग्रामीण और लकड़ी तस्कर उठा रहे है। वन भूमि पर कब्जे की मंशा से ग्रामीणों द्वारा सुनियोजित तरीके से पेड़ों की कटाई की जा रही है।
हरे पेड़ों को काटने से पहले उसके नीचे के हिस्से को गोलाकर छिल दिया जा रहा है,बीच मे आधा काटकर छोड़ दिया जा रहा है जब पेड़ सुख रहा है तो उसकी कटाई की जा रही है। ग्रामीणों को जमीन और जलाऊ लकड़ी मिल रही है और तस्कर फर्नीचर बनवाने के लिए लकड़ी के शेष हिस्से को खपा रहे है। कोठली जंगल मे बड़े पैमाने पर सिर्फ ठूंठ ही ठूंठ नजर आ रहे है।ठूंठ ही अवैध कटाई की कहानी बयां कर रहे है।भारी मात्रा में काट कर लकड़ियों को भी छोड़ दिया गया है।जंगल का जो इलाका खाली हो रहा है वहां ग्रामीणों द्वारा जोताई करा खेती की जा रही है। यह धंधा लम्बे समय से चल रहा है लेकिन सुरक्षा कारणों का हवाला देकर वन अधिकारी ,कर्मचारी इस क्षेत्र में भ्रमण पर भी नही जाते।