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एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज, अब सरकार बेचेगी इसकी संपत्तियां …

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एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज के बोझ तले दबे राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की देनदारियां चुकाने के लिए अब सरकार इसकी संपत्तियां बेचेगी। यही प्रक्रिया तिलहन संघ के लिए भी होगी। संघ की संपत्तियां प्रदेश और अन्य राज्यों में फैली हुई है। दोनों संस्थाओं की मैदानी स्थिति समझने के लिए शनिवार को सहकारिता विभाग ने सहायक व उप पंजीयक की बैठक बुलाई है। इसमें परिसमापन (बंद करने की प्रक्रिया) की प्रक्रिया के साथ नीलामी से मिलने वाली राशि से चुकाई जाने वाली देनदारी का फार्मूला भी तय किया जाएगा।कमलनाथ सरकार ने सालों पहले जिन संस्थाओं को बंद करने का फैसला लिया था, उन पर तेजी से काम करने का फैसला किया है। तिलहन संघ और राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक बंद करने का फैसला भाजपा सरकार में लिया गया था लेकिन प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। इनके कर्मचारियों का संविलियन दूसरे विभागों में करने की प्रक्रिया अभी तक चल रही है। वहीं, संस्थाओं के ऊपर चढ़े कर्ज को सरकार चुका रही है।

कर्मचारियों सहित अन्य संस्थाओं की देनदारियां भी हैं। इसे देखते हुए पिछले माह मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इसमें तय किया गया कि इन्हें बंद करने की कार्रवाई में तेजी लाई जाए और संपत्तियां बेचकर देनदारी चुकाई जाए। इसके मद्देनजर सहकारिता विभाग ने शनिवार को प्रदेशभर से सहायक व उप पंजीयकों को भोपाल बुलाया है।इनसे मैदानी फीडबैक लेकर परिसमापन की प्रक्रिया पूरी करने, संपत्तिओं का आकलन कर कीमत तय करने और देनदारी चुकाने के फार्मूले पर विचार किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि संस्थाओं की संपत्ति बिकने से जो राशि मिलेगी उससे अभी सबसे पहले सरकार को कोई कर बकाया है तो उसे अदा किया जाता है। इसके बाद शासन की देनदारी, सहकारी संस्थाओं की देनदारी, सुरक्षित निधि और फिर कर्मचारी व अन्य देनदारी चुकाई जाती है। हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में पहले कर्मचारियों की देनदारी चुकाने के निर्देश दिए हैं। इसके मद्देनजर बैंक में तय किया जाएगा कि देनदारी चुकाने का क्रम क्या रहेगा।

बैंक के ऊपर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज- राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अपने 38 जिला बैंकों के माध्यम से किसानों को दीर्घावधि (सात साल) के लिए कृषि ऋण देने का काम करता था। खराब माली हालात की वजह से 2011 से इसने कर्ज देना बंद कर दिया। हालत यह हो गई कि किसानों को कर्ज देने के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से लिए कर्ज को चुकाने की स्थिति भी नहीं रही। यह कर्ज सरकार की गारंटी पर मिला था, इसलिए सरकार ने अपनी छवि को देखते हुए 880 करोड़ रुपए खुद चुकाने का फैसला किया। वहीं, किसानों से वसूली के लिए ब्याज में छूट देकर एकमुश्त समझौता योजना लागू की पर इसे सफलता नहीं मिली।इसी बीच किसानों की जमीन बैंक द्वारा नीलाम करने में फर्जीवाड़े का मामला खुल गया।

लोकायुक्त में शिकायत हुई और सुप्रीम कोर्ट तक प्रकरण पहुंचा। शिवराज सरकार की किसान हितैषी छवि को इससे पहुंच रहे नुकसान को देखते हुए सरकार ने जमीन नीलाम करने पर रोक लगा दी और बैंक को बंद करने का फैसला ले लिया। करीब चार साल पहले यह निर्णय हुआ पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कर्मचारी हित को देखते हुए संविलियन योजना बनाई जो दिसंबर 2020 में समाप्त हो जाएगी।बैंक के पास भोपाल के अरेरा हिल्स इलाके में बैंक भवन और अतिथि गृह है। ग्वालियर में चार फ्लेट और कुछ जिला बैंकों के पास स्वयं की संपत्तियां हैं। इनमें से कुछ संपत्तियां अपेक्स बैंक के पास पचास करोड़ रुपए के कर्ज के एवज में बंधक है।

प्रदेश में सोयाबीन की बंपर पैदावार को देखते हुए अर्जुन सिंह सरकार ने तिलहन संघ बनाया था। संघ को सोयाबीन की खरीदी करने के साथ तेल बनाने और उसे बेचने की जिम्मेदारी दी गई थी। संघ ने पचामा सीहोर, चुरहट सीधी, चौरई छिंदवाड़ा और मुरैना में प्लांट लगाए थे।मुंबई में संघ का एक कमर्शियल भूखंड और दो फ्लेट, गुजरात के कांडला में ऑफिस और गोदाम है। उज्जैन क्षेत्रीय तिलहन संघ का प्लांट और करीब सौ एकड़ जमीन है। भोपाल में संघ का अपना भवन भी है। अधिकांश कर्मचारियों का संविलियन विभिन्न विभागों में हो चुका है। सूत्रों का कहना है कि संघ की कुछ संपत्तियों पर अतिक्रमण भी हो चुका है।

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