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छठ महापर्व कब है ?, यहां देखें नहाय-खाय से लेकर ऊषा अर्घ्य तक का तिथियां…………..

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हर साल छठ पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार छठ का महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से आरंभ होता है जो पूरे 4 दिनों तक रही है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती है। इस खास मौके पर छठी मैया की विधि-विधान से पूजा की जाती है। छठ पूजा के दौरान चार दिनों तक सूर्य देव की विशेष पूजा करने की परंपरा है। इस पर्व को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि स्थानों पर मनाते हैं। लेकिन अब छठ पर्व देश से लेकर विदेशों में भी भारतीय मूल के रहने वाले लोग मनाने लगे हैं। छठ को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना है। क्योकिं इसमें सूर्य देव के साथ ही देवी षष्ठी की भी उपासना की जाती है। नहाय खाय के साथ छठ की शुरुआत होती है और उषा अर्घ्य के साथ पर्व का समापन होता है। यह ऐसा धार्मिक पर्व है जो पारिवारिक रिश्तों को मजबूत बनाता है, अपनों को करीब लाता है और प्रकृति से जोड़ता है। इसमें पवित्र स्नान, उपवास, उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देना आदि शामिल है।

कब है छठ पूजा? 
दृक पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के साथ छठ पूजा आरंभ होती है।
षष्ठी तिथि आरंभ:  07 नवंबर,  देर रात्रि 12: 41
षष्ठी तिथि  समाप्त: 08 नवंबर, देर रात्रि 12: 34 पर

छठ महापर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। पंचांग के अनुसार छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर अष्टमी तिथि तक चलता है। इस साल छठ पर्व की शुरुआत 5 नवंबर से हो रही है, जिसका समापन 8 नवंबर 2024 को होगा।

  • नहाय खाय – मंगलवार 5 नवंबर 2024
  • खरना – बुधवार 6 नवंबर 2024
  • संध्या अर्घ्य – गुरुवार 7 नवंबर 2024
  • उषा अर्घ्य – शुक्रवार 8 नवंबर

छठ पूजा नहाय-खाय: नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत हो जाती है। यह पहला दिन होता है। इस दिन घर को पूरी तरह से शुद्ध किया जाता है। व्रतधारी सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करते हैं। प्रसाद के रूप में कद्दू चनादाल की सब्जी, अरवा चावल जैसे सात्विक भोजन बनाए जाते हैं, जिसमें प्याज-लहसुन का इस्तेमाल नहीं होता है।

छठ पर्व का दूसरा दिन खरना: नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन खरना किया जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है। इस दिन खीर और मीठी रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है।

संध्या अर्ध्य: छठ पर्व के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। संध्या अर्घ्य या अस्तचलगामी अर्घ्य को पहला अर्घ्य भी कहते हैं। इस दिन सूप में सभी प्रसाद जैसे – ठेकुआ, फल, नारियल आदि को रखकर दूध मिश्रित जल से अर्घ्य दिया जाता है।

 उषा अर्घ्य: उषा या उदयागामी अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है। इस दिन उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। संध्या अर्घ्य में जिन सूप और दौरा की परिक्रमा कर अर्घ्य दिया जाता है। उषा अर्घ्य में उन्हीं सूप और दौरा के प्रसाद का भोग लगाया जात है।

उषा अर्घ्य के बाद छठ पूजा का प्रसाद ग्रहण कर व्रतधारी 36 घंटे का व्रत खोलते हैं। भक्तों और परिवार वालों के बीच भी कृतज्ञता और सद्भावना के साथ छठ का प्रसाद बांटा जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान
  • छठ पूजा के दौरान बर्तन या पूजा सामग्री को किसी दूसरे के हाथ से नहीं छूना चाहिए। मन जाता है कि ऐसा करने से व्रती का व्रत खंडित हो जाता है।
  • महापर्व के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।
  • इसके अलावा पुराने बर्तनों का प्रयोग वर्जित होता है।

छठ महोत्सव का महत्व
छठ पूजा की शुरुआत दिवाली के बाद कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि से होती है। यह सूर्य देव को समर्पित विशेष पर्व है। इस दौरान श्रद्धालु अपने प्रियजनों की सुख, समृद्धि और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं। छठ पूजा के शुभ अवसर पर सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की विधिपूर्वक उपासना करने का विधान है। मान्यता है कि पूजा करने से जातक को छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है। सनातन शास्त्रों छठी मैया को संतानों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। इसलिए छठ पूजा के दिन छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व है।

 

 

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