Home सूरजपुर रामानुजनगर सूरजपुर : सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठ ………………..

सूरजपुर : सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठ ………………..

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जिला सूरजपुर में निर्दोष मासूम बच्ची और आरक्षक की पत्नी का मामला जोरो-शोरो से चल रहा है। पर सभी लोगों द्वारा इस मामले को लेकर तरह-तरह की कयास लगाई जा रही है। बता दें कि, किसी व्यक्ति का अपराधिक मामले में मीडिया में नाम लेना पार्दशिता को नहीं दर्शाता है। जब मामला इतना बड़ा तुर पकड़ रहा है तो आम जनता का ध्यान इस कबाड़ी के ऊपर क्यों नहीं ? जबकि एक कबाड़ी शहर के अंदर खरीदी-विक्री कर रहा था। लोगों में चर्चाऐं है कि, पुट्ठा व टीना से कबाड का धंधा नहीं चलता। जबकि चोरी की गाड़ियों का काटना एवं चोरी का लोहा लंगड खरीदा ये मेन काम कबाड़ियों का होता है। जो इस प्रकार के व्यापार में पुलिस को कबाड़ी लम्बा पैसा देता है। वही से पुलिस विभाग को पैसा आने का रास्ता बनता है। इस पर लोगों के नजर क्यों नहीं ? जबकि अपराधि के ऊपर अनगिनत मामला चल रहा था। तो पुलिस उसको संरक्षण क्यों दे रहा था ?

बता दें कि, कुछ समाचार पत्रों में अपराधि का नाम लिखा जा रहा है एवं जिसको सूरजपुर की आम जनता तरह-तरह उदाहरण देकर संबोधित कर रही है कि, अपराधि को फांसी होना चाहिए व पुतला दहन करने का कुटरचना दिखावा हो रहा है जबकि किसी व्यक्ति का ठोस प्रमाण न हो उसको अपराधि कहना गलत है। आज लगभग तीन-चार दिन का समय हो गया इसका चश्मदीद गवाह नहीं है। जब तक ठोस प्रमाण न हो तब कि किसी व्यक्ति को हत्यारा कहना सोच से परे है। न्यायालय एक समाननीय प्रणाली है जिसको सजा व विचाराधीन व्यक्ति को बदमास कहा जा सकता है।

लोगों में तरह-तरह की चर्चा है कि, मारने वाले को जब तक चश्मदीद गवाह न हो तब तक मीडिया किसी व्यक्ति को हत्यारा घोषित नहीं कर सकती। पुलिस जिसको पकड़ती है जरूरी नहीं की वह गतल हो। पुलिस के पास भी धोखा हो सकता है। अब देखना यह है कि, यह राजनितिक है या आपसी द्वेष ? कुछ लोग तो इस मडर को राजनितिक से भी जोड़ कर चल रहे है। अब विवेचना करनेवाला कहां तक इसको पार्दशिता दिखलाता है ? जैसे कुछ लोगों में चर्चा है कि, अपराधि झारखंड से अम्बिकापुर आ रहा था और रामानुजगंज में बस से उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसके उपरांत उसको सूरजपुर लाया गया और कोर्ट में पेश किया गया। अब पुलिस के रिमांड पर लिया गया है। लोगों का कहना है कि, 5 गिरफतारी में से कौन हत्यारा है यह जांच का विषय है। क्या पता इसके आड में कोई दूसरा हत्यारा तो नहीं ? इसलिए कहा जाता है- सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठ अर्थात- जब कोई चीज़ अस्तित्व में ही नहीं है, तो उसके लिए लड़ना या झगड़ा करना बेकार है।

लोगों का कहना है कि, जांच उरांत ही सविधानिक तरीके से माननीय न्यायालय दोशियों को मृत्युदंड या उम्र कैद का सजा देगा। किसी व्यक्ति या समुदाय समाज के धरना प्रदर्शन से किसी को सजा नहीं दिया जा सकता। लोगों की मांग पर न ही न्यायालय और न ही संविधान काम करता है। न्यायालय तो नियम, कानून और साक्ष्य के आधार पर दोशियों के ऊपर कार्यवाही करने का आदेश देता है।

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