ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी,
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते
चैत्र नवरात्रि की शुभकामनाएं ।
9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। यह 9 दिन मां दुर्गा को समर्पित होते हैं। इस दौरान व्रत और मां की पूजा अर्चना के साथ कलश स्थापना की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान घरों में पूजा पाठ किए जाते हैं।
नवरात्रि का पहला दिन, मां शैलपुत्री : चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो रहे हैं और घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाएगी। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान के साथ मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा उपासना की जाती है।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में पहले नवरात्र के दिन होती है। माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता ने दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं।
घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है, जो लगातार नौ दिन तक ही स्थान पर रखा जाता है। घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ीपड़वा) मंगलवार को रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो अगले दिन यानी 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट पर खत्म होगी।