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कोरिया जिले में सामूहिक बाड़ी कृषकों के लिए कोरोना काल में शकरकंद की कटिंग बन रही लाखों की आय का स्रोत…….

कोरिया के सहयोग से सामूहिक बाड़ी विकास की संकल्पना को साकार करने कृषकों को संगठित कर के घरों के समीप पड़त भूमि की जोतों को सामूहिक रूप से मिलाकर आदिवासी कृषकों की स्थापित फलदार मातृवाटिका में खेती शुरू

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    कोरिया 03 अगस्त 2020/ छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी सुराजी योजना- नरवा, गरुवा, घुरुवा अऊ बाड़ी के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र-कोरिया द्वारा कलेक्टर श्री एस एन राठौर के मार्गदर्शन में एवं जिला पंचायत कोरिया के सहयोग से सामूहिक बाड़ी विकास की संकल्पना को साकार करने कृषकों को संगठित कर के घरों के समीप पड़त भूमि की जोतों को सामूहिक रूप से मिलाकर आदिवासी कृषकों की स्थापित फलदार मातृवाटिका में खेती शुरू की गई है। विकासखंड मनेंद्रगढ़ के अंतर्गत ग्राम दुधनिया (12 एकड), ग्राम उमझर (13 एकड) (गोठान ग्राम), विकासखंड बैकुंठपुर तथा ग्राम लाई (गोठान ग्राम) (12 एकड), ग्राम विश्रामपुर (25 एकड), ग्राम शिवगढ़ (14 एकड), ग्राम ताराबहरा (12.5 एकड), की सामूहिक बाड़ी में मनरेगा के अनुमेय कार्य पडत भूमि विकास कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष भर सगंध फसलों की खेती, सब्जी का उत्पादन व सब्जियों का बीज उत्पादन कार्यक्रम टपक सिंचाई विधि से खेती प्रारम्भ की गयी है।
   कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारी ने बताया कि कोरोना के संक्रमण से उपजे संकट के इस दौर में भी कृषकों को लाभ पहुंचाने हेतु कृषि विज्ञान केंद्र दवारा सामूहिक बाड़ियों में माह मई एवं जून में कृषकों व मनरेगा श्रमिकों के सहयोग से शकरकंद की उन्नत प्रजातियों श्री भद्रा, श्री रत्ना, इंदिरा नंदिनी व इंदिरा मधुर की 12 हजार कटिंग को लगायी गयी थी। वर्तमान में उमझर, लाई व दुधानिया की सामूहिक बाड़ियों से लगभग 1 लाख से अधिक शकरकंद की कटिंग 3 रुपये प्रति कटिंग की दर से विक्रय किया जा चुका है, जिसका मूल्य 3.00 लाख रूपए है।
       उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन व जिला पंचायत-कोरिया के सहयोग में सामूहिक बाड़ी विकास के अंतर्गत खरीफ वर्ष 2020-21 में विकासखंड बैकुंठपुर के ग्राम नगर व तिलवंडांड में 1-1 एकड़ रकबे में अगस्त माह में 20 हजार शकरकंद कटिंग को ड्रिप सिंचाई में कृषि विज्ञान केंद्र के तकनीकी मार्गदर्शन में लगाया जायेगा ताकि भविष्य में कोरिया जिले के अलावा छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों को आगामी वर्षों में कटिंग का विक्रय कर कृषकों को अतिरिक्त आय का साधन मिल सके। अगस्त माह से उमझर, लाई, शिवगढ़, तारबहरा, विश्रामपुर, नगर, तिलवंडांड व दुधानिया की सामूहिक बाड़ियों से औसतन 3.0 से 3.5 लाख कटिंग निकलना शुरू हो जायेगा, माह सितम्बर के अंत तक कटिंग का कार्य चलेगा। इस तरह कुल लगभग 10 से 15 लाख कटिंग का विक्रय कर अनुमानित 30 से 45 लाख रूपए सिर्फ शकरकंद कटिंग से ही कृषकों को आमदनी प्राप्त होगी, साथ ही शकरकंद की उन्नत प्रजातियों का रकबा कोरिया जिले में बढ़ेगा।
    आदिवासी कृषकों की आय में सहकारिता के अनुरूप त्वरित वृद्धि करने के लिए बाड़ियों के चारों और शकरकंद व सतावर कंद फसलों को लगाया गया है ताकि आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उद्यानिकी विभाग से प्राप्त 20 लाख उन्नत किस्मों की मांग के अनुसार कृषकों की सामूहिक बाड़ियों में विभिन्न प्रजातियों की कटिंग से पूरा किया जा सके।
   भारत दवारा वर्ष 2019-20 में शकरकंद 859.02 मीट्रिक टन निर्यात किया गया जिसका अनुमानित मूल्य लगभग 179.04 लाख रूपए है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के कुल 17 राज्यों में शकरकंद की खेती की जाती है जिसमें छत्तीसगढ़ का उत्पादन में छटवां स्थान है। शकरकंद फाइबर, विटामिन बी 6, ई और सी का एक उत्कृष्ट स्रोत है। दिल के लिए अच्छा है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है। तनाव को दूर करने में मदद करता है। पाचन के लिए अच्छा होता है और इसमें स्टार्च की अच्छी मात्रा होती है। शकरकंद में मजबूत इम्युनिटी और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह कैंसर को रोकने में मदद करता है। प्रति हेक्टेयर शकरकंद की खेती से 20 से 25 लाख कटिंग व यदि लगातार कटिंग की कटाई करते रहेंगे तो 8 से 10 टन शकरकंद की उपज प्राप्त होती है। शकरकंद का विक्रय मूल्य खुले बाजार में लगभग 25 से 30 रूपए किलो तक होता है।
       जिले में कृषकों की सामूहिक बाड़ियों में रोपित की गयी शकरकंद की उन्नत किस्मों की विशेषता इस तरह से हैः- श्री भद्रा – शकरकंद की एक बहुत लोकप्रिय किस्म है। किसान श्री भद्रा शकरकंद की अच्छी पैदावार, त्वचा के रंग और पकाने की गुणवत्ता के कारण मुख्य रूप से इस किस्म को पसंद करते हैं। श्री भद्रा में कैरोटीन सामग्री 0.5 से 0.6 मिलीग्रामध्100 ग्राम है और यह 90 दिनों तक परिपक्व होती है। श्री  रत्ना – एक फैलने वाली किस्म, बैंगनी त्वचा, नारंगी गुदा और उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता के साथ 90-105 दिनों में 20-26 टनध्हेक्टेयर उपज। इंदिरा मधुर – सीआईपी, नई दिल्ली से प्राप्त सामग्री से क्लोनल चयन के माध्यम से शकरकंद की यह पहली विकसित किस्म है। इसकी बेल की लंबाई 100-120 सेमी और अर्ध प्रसार की वृद्धि की आदत है। इंदिरा नंदिनी – श्री  नंदिनी व ओपन  पोलिनेटेड  वेरायटीज के पाली क्रॉस से प्राप्त क्लोनल चयन प्रक्रिया दवारा इस किस्म को विकसित किया गया है। यह 120 दिनों में परिपक्व हो जाता है और मध्यम परिपक्वता समूह के अंतर्गत आती है और उपज 25.53 टनध्हेक्टेयर है, जो कि मानक चेक किस्म श्री वर्धनी से 33.52 प्रतिशत अधिक है।
     जिला प्रशासन के निर्देशन में केवीके के वैज्ञानिकों दवारा जिले में एक सर्वे अभियान शुरू किया गया है जिससे शकरकंद उत्पादन करने वाले कृषकों की आधारभूत जानकारी व उत्पादित शकरकंद की उपज का आंकलन कर भविष्य में शकरकंद आधारित प्रसंस्करण व मूल्यवर्धन उत्पाद जैसे आटा, चिप्स, बिस्कुट इत्यादि से सम्बंधित लघु उद्योंगों को ग्रामीण स्तर पर स्थापित कर स्व रोजगार से स्व उद्यमिता के मंत्र को सिद्ध किया जा सके।

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