ग्वालियर ।सनातन हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथ और परंपराओं में सात्विक जीवन जीने का रहस्य छिपा है। इसमें यह भी बताया जाता है कि जब आप किसी वायरस से संक्रमित हो तो उस दौरान आपकी दिनचर्या कैसी हो और आपको क्या करना चाहिए। इसका जीता जागता उदाहरण है भगवान जगन्नाथ का आम मनुष्यों की तरह वायरस से संक्रमित होना।
कुलैथ ग्राम में विराजमान भगवान जगन्नाथ 16 जून को वायरस से पीड़ित हो गए, जिसके बाद 7 दिनों के लिए भगवान क्वारंटाइन (एकांतवास) में चले गए। इस दौरान मंदिर के पट आमभक्तों के लिए बंद हो गए। इस दौरान केवल श्रीवास्तव परिवार के मुख्य सेवाधारी किशोरीलाल ही अंदर प्रवेश कर भगवान की सेवा करते हैं।
कोरोना महामारी के दौरान एक शब्द सबसे अधिक प्रचलित हुआ है वह है क्वारंटाइन (एकांतवास) । लेकिन इस शब्द का महत्व सनातन हिंदू धर्म के प्रचलन में कई सदियों से है। कुलैथ में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। इस मंदिर में हर साल आषाढ़ मास में अमावस्या को तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।
इस दौरान भगवान का भंडारा और रथयात्रा का आयोजन होता है। लेकिन इस मेले से ठीक 7 दिन पहले भगवान जगन्नाथ वायरस से संक्रमित होते हैं। उन्हें बुखार आता है, खांसी, जुकाम होता है। इस दौरान उन्हें 7 दिनों के लिए क्वारंटाइन कर दिया जाता है। इस बार जगन्नााथजी का मेला 23 जून से प्रारंभ होगाा।
किशोरीलाल श्रीवास्तव ने बताया कि भगवान जब बीमार होते हैं तो उनके वस्त्र ढीले हो जाते हैं। उनके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। साथ ही ऐसा महसूस होता है जैसा भगवान की प्रतिमा से पसीना आ रहा हो। लेकिन रथयात्रा वाले दिन भगवान का चेहरा भर जाता है उनका वजन भी बढ़ा हुआ लगता है।
भगवान जगन्नाथ के भात में हर बार चमत्कार होता है। यहां पर एक के ऊपर एक करके सात घड़े रख दिए जाते हैं। इनमें चावल और पानी भरा होता है। सबसे नीचे वाले घड़े के नीचे आग जला दी जाती है। लेकिन चावल सबसे पहले ऊपर वाले घड़ों के पकना प्रारंभ होते हैं। इसके बाद भगवान के सामने रखते ही घड़ा चार भागों में फूट जाता है। इसी चावल का प्रसाद भक्तों को वितरित किया जाता है।
ग्वालियर से 20 किलोमीटर की दूरी पर कुलैथ गांव है। यहां पर पुरानी छावनी और तिघरा की ओर से पहुंचने के लिए मार्ग बने हुए हैं।