भोपाल। जल संरक्षण के लिए संकल्पित होना मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सतपिपलिया गांव के लोगों से सीखा जा सकता है। करीब 50 साल की प्यास एक साल पहले बुझी तो लोगों ने बूंदभर पानी भी बेकार बहाने से तौबा कर ली। एक साल पहले यहां के लोग डेढ़-दो किमी दूर से बैलगाड़ी व साइकिल से पानी लाते थे। एक बाल्टी पानी के लिए रतजगा करते थे। अब 396 घरों में नलजल योजना से पानी पहुंच रहा है, लेकिन मजाल है कि बूंदभर पानी भी बर्बाद हो जाए। यदि गलती से कोई ऐसा करता है, तो पूरा गांव उसे समझाइश देने पहुंच जाता है। पंचायत ने नाले पर स्टॉप डैम बना दिया है। अब हर घर सोख्ता गड्ढे खोदवाने की तैयारी में जुटा है, ताकि भू-जल स्तर बढ़ाकर गांव की इस समस्या को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके। गांव का प्रत्येक व्यक्ति समय पर जल कर देता है।
गांव की जमीन में 10 से 50 फीट की गहराई से काला पत्थर शुरू होता है, जो पानी को जमीन में रिसने और बाहर निकलने नहीं देता। 2100 की आबादी वाले इस गांव में 450 कुएं और करीब 150 ट्यूबवेल खोदे गए, फिर भी गांव प्यासा रहा। फिर ग्रामीणों ने देवताओं को मनाया, तकनीक के जरिए भूगर्भ में पानी का पता लगाया, तब कहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग ने 1375 मीटर खोदाई कर पानी का इंतजाम किया। सवा लाख लीटर की टंकी बनाई और करीब छह हजार मीटर पाइप लाइन बिछाकर घर-घर पानी पहुंचाया।
गांव के बुजुर्ग भोलाराम बताते हैं कि एक साल पहले तक पूरा दिन पानी के इंतजाम में निकल जाता था। लोग पानी की चोरी करते थे। मनोहर सिंह बताते हैं कि एक साल से पर्याप्त पानी है। अब पानी की बचत के तरीकों पर काम कर रहे हैं।
पानी के लिए ग्रामीणों ने 10 साल मंत्रियों के चक्कर लगाए। पीएचई के अफसरों से मिले तो उन्होंने नलजल योजना की लागत की तीन फीसदी राशि जमा करने की शर्त रख दी। पीएचई के कार्यपालन यंत्री एमसी अहिरवार बताते हैं कि ग्रामीणों ने ढाई लाख रुपए इकठ्ठे किए, तभी मुख्यमंत्री नल-जल योजना आ गई और गांव को प्राथमिकता में लेकर योजना शुरू कर दी।