टीकमगढ़। गणतंत्र दिवस 2020 सागर संभाग की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत चंदेरा (जिला टीकमगढ़) से जुड़ी आजादी की कहानी भी बहुत अनूठी है और अनसुनी भी। यहां के लोग देश की स्वतंत्रता के चार माह बाद अंग्रेजों की गुलामी से सच्चे मायनों में आजाद हुए थे। यही कारण है कि गांव में स्वतंत्रता दिवस के मुकाबले गणतंत्र दिवस दोगुने उत्साह से मनाया जाता है।
आजादी की लड़ाई में इस गांव का योगदान इस मायने में महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्रता मिलने के बाद भी अंग्रेजों के जुल्म जारी रहने से परेशान होकर निवाड़ी क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. लालाराम वाजपेयी ने साथियों के साथ अंग्रेज सेना की टुकड़ी के खिलाफ बगावत कर दी थी। पूरे नौ घंटे की लड़ाई के बाद चंदेरा से अंग्रेज सैनिकों को भगाया जा सका। दरअसल, देश को भले ही 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिल गई हो लेकिन चंदेरा में अंग्रेजों की एक टुकड़ी यहां रुकी रही, वह भी महीनों तक।
देश में संक्रमण के उस दौर में इस टुकड़ी के सैनिकों ने पूरी पंचायत के ग्रामीणों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया और उनके जुल्म बदस्तूर जारी रहे। यहां सबसे रोचक यह है कि चंदेरा उन दिनों ओरछा स्टेट का हिस्सा था और बुंदेलखंड में ओरछा स्टेट ही ऐसा था जिसने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए पहला पत्र सौंपा था। तत्कालीन राजा वीरसिंह जूदेव ने यह पत्र सौंपा था। इतिहासकार हरिविष्णु अवस्थी बताते हैं कि चंदेरा कांड काफी प्रसिद्ध है। उस समय ब्रिटिश शासन का स्टेट गवर्मेंट से समझौता हुआ करता था लेकिन बदलाव के दौर में अंग्रेजों का आतंक कायम था। वाजपेयी ने उन्हें भगाने खुद प्रधानमंत्री बनकर उत्तरदायी शासन लागू किया।
गांव के वरिष्ठ नागरिक जगतनारायण गंगेले ने बताया कि वाजपेयी ने लोगों को एकत्र किया और क्षेत्र में कैंप लगाकर अपनी रणनीति बनाई। वाजपेयी के नेतृत्व में जिले भर से आए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और ग्रामीणों ने 17 दिसंबर, 1947 को एक बार फिर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो” नारे के साथ जंग का ऐलान कर दिया। सुबह आठ बजे उन्होंने अंग्रेजों की टुकड़ी के साथ पंचायत के समर्रा पहाड़ क्षेत्र में लाठी, बल्लम के सहारे युद्ध शुरू कर दिया।
नंदा कुशवाहा, कड़ोरे दलाल, ढलु दुबे, बरजोर सिंह बुंदेला, पन्नाा सेठ, नंदराम मामोलिया, दयाराम शुक्ल, अजुद्धि तिवारी, सीताराम दुबे, रामसिंह पचौरा, लाल सिंह सियावनी का योगदान आज भी ग्रामीण नहीं भूले हैं।
चंदेरा में अंग्रेजों की फौज के 60 से अधिक सैनिकों ने सेनानियों पर बंदूकों, तोपों और कई शस्त्रों से हमले किए। करीब नौ घंटे चले युद्ध में पांच स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए लेकिन अंग्रेज सैनिक भाग निकले। इस दौरान कई ग्रामीण और कई कांग्रेसी भी घायल हो गए। सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानी आजादी के गवाह बने। अंग्रेजों द्वारा चंदेरा छोड़ते ही गांव में खुशी की लहर दौड़ी और ग्रामीणों ने तिरंगा फहराते हुए आजादी का जश्न मनाया। सच्ची आजादी मिलने में हुई देरी के बाद गांव के लोगों ने थोड़े इंतजार के बाद गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) को ही आजादी की वर्षगांठ मनाना शुरू कर दिया। गांव में आज भी गणतंत्र दिवस का रंग स्वतंत्रता दिवस के जश्न के रंग से ज्यादा चमकदार होता है। 15 अगस्त औपचारिक रूप से ही मनाया जाता है