अंबिकापुर। सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम लिपंगी निवासी एक ग्रामीण ने बीते वर्ष जनवरी माह में परिवार नियोजन के तहत पत्नी का नसबंदी ऑपरेशन करवाया, लेकिन कुछ माह बाद ही महिला का गर्भ ठहर गया और क्षेत्रीय अस्पताल में उसने पुत्र को जन्म दिया। मजदूरी व खेती किसानी करके जीविकोपार्जन करने वाले ग्रामीण का कहना है कि पहले से उसके दो पुत्र-एक पुत्री हैं, जिनके पालन-पोषण, शिक्षा का खर्च वहन करने में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पुत्र के जन्म के बाद वह परंपरा अनुसार छटी-बरही का कार्यक्रम तो निपटा लिया, पर चार बच्चों का पिता बनने के बाद उसे आर्थिक तंगी की चिंता सता रही है। ग्रामीण का कहना है कि उसकी माली स्थिति को देखते हुए सरकार बच्चे के पालन-पोषण और पढ़ाई के लिए मुआवजा दे। जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के उद्देश्य से किए जानेवाले नसबंदी ऑपरेशन के फेल होने का सरगुजा जिले के सीतापुर में पहला मामला आया था।
दूसरा मामला लखनपुर विकासखंड के ग्राम लिपंगी का सामने आया है। अकेश्वर सिंह ने तीन बच्चों के जन्म के बाद अपनी पत्नी रामकेली बाई 31 वर्ष का नसबंदी ऑपरेशन मेडिकल कॉलेज अस्पताल अंबिकापुर में नौ जनवरी को कराया। इसके एवज में उसकी पत्नी को परिवार कल्याण विभाग की ओर से दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि 14 सौ रुपये का लाभ मिला। इसके बाद वह बच्चे नहीं होने को लेकर निश्चिंत था। अप्रैल-मई 2019 में जब उसकी पत्नी को गर्भ ठहरने का एहसास हुआ तो वह इसकी जानकारी अपने पति को दिया। अकेश्वर को सहज विश्वास नहीं हुआ। जांच कराने पर पता चला कि चार माह का गर्भ ठहर चुका है। इसकी जानकारी वह कुन्नी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दिया, तो डॉक्टर ने अंबिकापुर जाकर एबार्शन कराने की सलाह दी, जो उसे उचित नहीं लगा। 29 अक्टूबर 2019 को रामकेली बाई की डिलीवरी हुई और वह स्वस्थ्य शिशु को जन्म दी। ऐसे में नसबंदी के बाद वह फिर से मां बन चुकी है। मजदूरी करके गुजारा करने वाला अकेश्वर इसे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही मान रहा है। आर्थिक तंगी के चलते वह अपने एक पुत्र को रायगढ़ भेज दिया है, जहां वह कक्षा तीसरी में पढ़ रहा है। इन परिस्थितियों के बीच चौथे बच्चे के जन्म से उसकी चिंता बढ़ गई है।
अनुदान का है प्रावधान
स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों का कहना है कि नसबंदी ऑपरेशन फेल होने पर जांच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही नसबंदी कराने वाले हितग्राही को अनुदान का लाभ मिलता है। कई बार जटिल प्रक्रिया को देखते हुए दूरदराज क्षेत्र के हितग्राही अनुदान, मुआवजा के लाभ से वंचित रह जाते हैं। क्षतिपूर्ति के लिए 90 दिन के अंदर विभाग को सूचना देना है। इस प्रक्रिया का पालन करने के बाद 30 हजार रुपये मुआवजा के रूप में मिलता है। निःशुल्क गर्भपात व ऑपरेशन के दौरान मृत्यु की स्थिति में एक लाख रुपये मुआवजा का प्रावधान है।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही
नसबंदी के बाद संतान का जन्म लेना कहीं न कहीं स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को दर्शाता है। नसबंदी के पूर्व महिला के गर्भधारण की स्थिति की जांच होती है। गर्भवती टेस्ट के पॉजीटिव होने की स्थिति में नसबंदी नहीं की जाती है। देखने को यह भी मिल रहा है कि गांव-गांव तक मितानिनों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को नसबंदी का टारगेट थमा दिया जाता है। महिलाओं को एकत्र कर नसबंदी के लिए तमाम परेशानियों के बीच स्वयं साधन जुगाड़कर मुख्यालय तक पहुंचती हैं। ग्रामीण दंपती को एलटीटी के बाद प्रमाणपत्र तक नहीं दिया गया। अकेश्वर का कहना है, उसकी पत्नी को गांव से ढोकर ले गए फिर घर पहुंचा दिया।
प्रमाणपत्र की उपयोगिता से बेखबर
नसबंदी के असफल होने जैसे मामले सर्वाधिक कैंप में सामने आते हैं। नसबंदी के पूर्व हितग्राही से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराया जाता है। गांवों की अधिकांश महिलाओं को यह पता नहीं रहता कि उन्हें नसबंदी के बाद मिले प्रमाणपत्र को भविष्य के लिए संभालकर रखना क्यों जरूरी है। ऑपरेशन असफल होने पर मुआवजे का दावा करने के लिए इसकी जरूरत होती है। वहीं नसबंदी के लिए पहुंचने वाले कई हितग्राहियों को प्रमाणपत्र से नहीं खाते में आने वाली प्रोत्साहन राशि से वास्ता रहता है।