पक्षियों की न तो कोई सरहद होता है और न कोई सीमा। मौसम के अनुसार ये अपना घर और डगर दोनों ही बदल देते है लेकिन जहां भी जाते है ये लोगों को अपनी ऒर खींच ही लेते है और खूबसूरत पक्षियां हो तो उन्हे देखना किसे पसन्द नही। जी हां अगर आप प्रकृति और पशु पक्षियों के प्रेमी है तो ये खबर आपके लिए बेहद सुकून देने वाली है कि धमतरीे जिले की खूबसूरत वादियों में दुर्लभ प्रवासी पक्षियों का दीदार हो सकता है। इनमें तो कई ऐसे पक्षी हैं जिनकी तस्वीरें पहली बार कैमरे में कैद हुई है लिहाजा इसे जिले के लिये एक बड़ी उपलब्धि भी माना जा रहा है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि धमतरी जिले में हजारों किलोमीटर दूर से प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला लगातार जारी है। बता दें कि जिले की आबोहवा प्रवासी पक्षियों को खूब भाती है शायद यही वजह की ठंड के मौसम में प्रवासी विदेशी पक्षी यहां डेरा जमाते है। एक रिसर्च में यह पाया गया है कि यहां के जंगलों में हजारों किलोमीटर दूर से प्रवासी पक्षियां विचरण करते पहुंच रहे है जिन्हे कलरव करते हुए देखा जा सकता है ये पक्षी खासतौर पर अलग अलग सीजन में ही जंगलों में विचरण करने के लिए आते है।
प्रदेश में पहली बार देखे गए प्रवासी पक्षी
वाईल्ड लाईफ फोटोग्राफी से जुड़े गोपीकृष्ण साहू और अमर मुलवानी के मुताबिक पाईड एवोसेड और कैस्पियन टर्न नाम के प्रवासी पक्षियों को छत्तीसगढ़ में पहली बार देखा गया है जिसकी पहली तस्वीर धमतरी में ली गई है। पाईड एवोसेड एक यूरोपीय पक्षी है जो हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर गुजरात के कच्छ से होते हुए पाकिस्तान पहुंचते है और वहां प्रजनन के बाद अफ्रीका की ओर बढ़ जाते है वही कैस्पियन टर्न अपनी प्रजाति का सबसे बड़ा पक्षी माना जाता है जिसकी लंबाई 27 सेंटीमीटर तक होती है। ये पक्षी ग्रीक से निकलकर विचरण करते हुए अफ्रीका की ओर बढ़ते हैं।
इन खास मेहमानों का हुआ दीदार
सात समंदर पार से उड़ान भरकर आने वाले जिन खास मेहमानों का दीदार जिले में हुआ है उनमें प्रमुख रूप से पैसेफिक गोल्डन प्लोवर पक्षी,व्हिम ब्रेल,डनलीन,रिवर लैपविंग,टैमनिक स्टींट,लेसर सेंट प्लोवर पक्षियां शामिल है जिनकी तस्वीरें जिले में पहली बार लिए गए है। बताया जाता है कि पैसेफिक गोल्डन प्लोवर पक्षी 23 से 26 सेंटीमीटर लंबे होते है सुनहरे और काले रंग के ये पक्षी एक खुले क्षेत्र में जमीन पर घोंसला बनाते हैं। ये उन प्रवासी पक्षियों में से एक हैं जो यूरोप से भारत पहुंचते है और यहां ठंड में कुछ समय बिताने के बाद ऑस्ट्रेलिया की ओर निकल पड़ते है। इसी तरह टैमनिक स्टींट पक्षी डच से होकर अफ्रीका की ओर बढ़ते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये पक्षी बहुत ही कम जगहों पर रूकते है और लंबी यात्रा करते है। वही व्हिम ब्रेल नामक पक्षी ग्रीक से निकलकर एशिया होते हुए अफ्रीका की तरफ बढ़ते हैं। डनलीन पक्षी भी यूरोप से निकलकर अफ्रीका और अंटलाटिक की ओर बढ़ जाते हैं। इसके अलावा रिवर लैपविंग पक्षी एशिया में ही विचरण करते हुए भारत में प्रजनन करते हैं। वही इन प्रवासी पक्षियों में एक लेसर सेंट प्लोवर पक्षी भी है जो साइबेरिया से हिमालय होते हुए साउथ की ओर आगे बढ़ जाती है। वैसे जिले में पहली बार देखे गए पक्षियों में वाॅटर काॅक पक्षी का नाम भी शामिल है जो मूलतः भारतीय पक्षी है।
जिले में संरक्षण की सुविधा नहीं
प्रवासी पक्षी ग्रीक,डच,रुस,अमेरिका,साइबेरिया सहित अन्य देशों से हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर यहां हर साल आते है बावजूद इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए कोई विशेष व्यवस्था जिले में नहीं की गई है। यही वजह है कि शिकारी इन्हें आसानी से अपना शिकार बना रहे हैं, वही जिन क्षेत्रों में यह प्रवासी पक्षियां पहुंच रहे हैं उन क्षेत्रों में लोग बड़े पैमाने पर गंदगी फैला रहे हैं। समय रहते इन क्षेत्रों को संरक्षित नही किया गया तो इन प्रवासी पक्षियों के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। नेचर एन्ड वाईल्ड लाइफ टीम से जुड़े गोपीकृष्ण साहू और अमर मुलवानी साल 2015 से इस फील्ड में काम रहे है जिन्होंने जिले में अब तक 250 से भी अधिक प्रवासी पक्षियों की तस्वीर को अपने कैमरे में कैद की है जिसकी जानकारी वे इंटरनेशनल ई बर्ड संस्था और छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ को भी लगातार भेज रहे हैं। साथ ही वाइल्ड लाइफ से जुड़े वैज्ञानिकों के साथ भी इसकी सूचनाएं साझा कर रहे हैं। इनकी माने तो जिले में इस तरह के पक्षी मिलना एक बड़ी उपलब्धि है और अगर प्रकृति को बचाना है तो इन पक्षियों को संरक्षित करना जरूरी है।