बिलासपुर। यह है अपना घर । यह वह आशियाना है,जहां दुनिया से ठुकराए बच्चों को आश्रय देकर जीवन जीने की कला सिखाई जाती है। यह वह संस्था है जहां गंभीर बीमारी से ग्रसित बच्चों और युवाओं को नई जिंदगी जीने के साथ ही कॅरियर के प्रति गंभीर बनाया जाता है। बीमारी से लड़ने के साथ ही अपना भविष्य गढ़ने की कला सीखनी है तो अपना घर के चहारदीवारी तक पहुंचना होगा। एचआइवी(एड्स) संक्रमित का नाम सुनते ही घृणा भाव आ जाती है। पीड़ितों से लोग दूर भागने लगते हैं। दूर तो भागते ही हैं साथ ही सामाजिक प्रताड़ना और दुत्कार भी पीड़ितों को मिलती है। परिजन तक अपनों से दूरी बनाने लगते हैं। इसका भयावह चेहरा देखना है तो अपना घर पहुंचना होगा। अपना घर में प्रदेश के साथ ही अन्य प्रांतों के 16 बच्चे हैं जो इससे संक्रमित हैं। पीड़ित होने का इन मासूमों को सामाजिक व पारिवारिक दोनों ही तरह का दंश झेलना पड़ रहा है। अपने जिगर के टुकड़ों को लोगों ने अपने से दूर कर दिया है। जिसे दुनिया ने दुत्कार और प्रताड़ित किया उन्हें अपना घर आश्रम ने दिल से अपना लिया है। 16 बच्चों की पढ़ाई लिखाई से लेकर कॅरियर की राह भी दिखा रहे हैं। अपना घर की संचालिका पेशे से हाईकोर्ट की वकील प्रियंका शुक्ला बताती हैं कि उनका मकसद ऐसे पीड़ितों की मदद करना तो है साथ ही संवैधानिक अधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक करना भी है। प्रियंका को वकालत के पेशे से जो फीस मिलती है उसका आधा हिस्सा इन पीड़ितों की सेवा में खर्च करती हैं। अपना घर में छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य प्रांतों के 16 बच्चे हैं । ये ऐसे बच्चे हैं जिनको परिवार ने भी छोड़ दिया है। इनकी पढ़ाई लिखाई से लेकर अन्य खर्च संस्था वहन कर रही है। दूरस्थ वनांचलों मेें प्रियंका की संस्था वनवासियों को उनके अधिकारों के प्रति सजग भी कर रहा है। संविधान प्रदत्त अधिकारों के प्रति लोगों को जागस्र्क करना और प्रताड़ित व्यक्तियों की कानूनी मदद करना इनका मकसद बन गया है। नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से भी लोगों को संविधान प्रदत्त अधिकार के प्रति जागस्र्क करने का काम प्रियंका बखूबी कर रही हैं।