रायगढ़। जिला अस्पताल को जब से मेडिकल कालेज अस्पताल में मर्ज किया गया है। तब से यहां की व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन आया है। आधुनिक मशीनों की मदद से बेहतर उपचार हो रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण अस्पताल ओपीडी काउंटर की रिपोर्ट है। ओपीडी में बढ़ती मरीजों की संख्या अस्पताल की विश्वसनीयता का प्रमाण है। इसी क्रम में समय से पहले जन्मी एक नवजात बच्ची को डाक्टरों ने नया जीवन दिया है। सामान्यत: नौ महीने मां के गर्भ में रहने के बाद बच्चे का जन्म होता है। लेकिन, महज छह महीने में ही मां के गर्भ से बाहर आयी बच्ची का जीवन बचा पाना डाक्टरों के लिए बड़ी चुनौती थी। जिसे संभव करके डाक्टरों ने परिजनों का दिल जीत लिया है। मेडिकल कालेज हास्पिटल रायगढ़ में मौजूद डाक्टरों ने समय से पहले जन्मी नवजात बालिका को नव जीवन देने का कीर्तिमान हासिल किया है। जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर सारंगढ़ तहसील की ग्राम छर्रा निवासी गर्भवती महिला जानकी को पेट दर्द की शिकायत के बाद रायगढ़ मेडिकल कालेज अस्पताल में 19 सितम्बर को भर्ती किया गया था। डाक्टरों ने पेटदर्द को अप्राकृतिक बताकर प्रसव पीड़ा होने की आशंका जाहिर की। दर्द से महिला की हालत लगातार बिगड़ रही थी।
वहीं बिगड़ती हालत को देखकर प्रसव के लिए ले जाया गया। जहां महिला ने समय से पूर्व 26 सप्ताह की अविकसित बालिका को सामान्य प्रसव से जन्म दिया। इस प्रसव के बाद बालिका की सेहत की जांच की गई तो पता चला कि नवजात का वजन 600 ग्राम मात्र है,जो सामान्य औसत से बहुत कम है। वहीं डाक्टरों की टीम ने नवजात बलिका को प्रीमैच्योर बताया। डाक्टरों की टीम ने उक्त नवजात को नवजीवन देने की ठानी और बेहतर इलाज के लिए शारीरिक स्पर्श के सहारे एक माह तक अस्पताल में रखा गया। प्राकृतिक तौर से अविकसित नवजात की डॉक्टरों की टीम ने अपनी सघन निगरानी में उसे रखा। दो माह तक सघन उपचार मदर केयर यूनिट में रखकर किया गया। अब बेहतर इलाज होने के कारण बालिका का वजन 1 किलो 200 ग्राम हो गया है। डाक्टरों ने बालिका के स्वस्थ्य होने पर अब उसे डिस्चार्ज कर दिया है।बालिका के स्वस्थ्य होने के बाद माता-पिता और परिजनों में खुशी की लहर है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि डाक्टर धरती में भगवान के स्वरूप हैं। यदि डाक्टर नवजीवन देते हैं तो उन्हें सम्मान मिलना चाहिए। इस तरह का केस रेयर होता है। बच्चे का जन्म सामान्य तौर पर 40 हफ्ते में होता है।