भोपाल। मध्य प्रदेश में गैर सरकारी संगठन (NGO) को लेकर उठ रहे सवालों के बीच नशा मुक्ति के क्षेत्र में काम करने वाले एक एनजीओ न्यू प्रताप शिक्षा एवं समाज कल्याण समिति भोपाल का मामला सामने आया है। सीहोर(Sehore) में काम करने वाले इस एनजीओ की मान्यता को लेकर दो कलेक्टरों की राय अलग-अलग सामने आई है। मई में एक कलेक्टर की सिफारिश पर एनजीओ की मान्यता समाप्त की गई तो चार माह बाद दूसरे कलेक्टर ने मान्यता बहाली की अनुशंसा कर दी, जबकि संस्था ने स्वयं स्वीकार करते हुए बिना अनुमति चलाए जा रहे केंद्र को बंद कर दिया है। बताया जा रहा है कि सामाजिक न्याय विभाग में संस्था की मान्यता बहाल करने की तैयारी भी हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार की नशामुक्ति योजना के तहत न्यू प्रताप शिक्षा एवं समाज कल्याण समिति सीहोर में नशामुक्ति केंद्र चलाती है। इसे 20 सितंबर 1995 को मान्यता दी गई।
गैर सरकारी संगठनों की कार्यप्रणाली को लेकर पूरे प्रदेश में सवाल उठने पर जब जांच करवाई गई तो सामने आया कि समिति मम: संकल्प नशामुक्ति केंद्र के नाम से अवैध तौर पर एक केंद्र और चला रही थी। इसकी किसी भी स्तर पर कोई अनुमति नहीं ली गई। इसमें 94 नशा पीड़ित व्यक्ति जांच के दौरान पाए गए। प्रत्येक से आठ हजार रुपए महीना लिया गया, जबकि यह व्यवस्था नि:शुल्क रहती है। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन कलेक्टर गणेश शंकर मिश्रा ने थाना प्रभारी कोतवाली को 15 मई 2019 को पत्र लिखकर एफआईआर करने के लिए कहा। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा कि तीन अप्रैल को संस्था को नोटिस जारी करके जवाब मांगा गया, जो उन्होंने नहीं दिया।
अवैध रूप से चलाई जा रही संस्था के कोई प्रमाण पत्र भी उपलब्ध नहीं कराए गए, जिसके चलते संस्था की कार्यप्रणाली संदिग्ध प्रतीत होती है। शासन को भेजी इस रिपोर्ट के आधार पर मान्यता समाप्त करने का फैसला लिया गया। उधर, चार माह बाद आए नए कलेक्टर अजय गुप्ता ने 25 सितंबर को जिले में नशामुक्ति के लिए काम करने वाली एकमात्र संस्था होने का हवाला देते हुए मान्यता बहाली की सिफारिश कर दी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने शासन को भेजे पत्र में कहा कि संस्था ने शपथ पत्र देकर आग्रह किया है कि वह गैर अनुदान पर चलाए जा रहे मम: संकल्प केंद्र का संचालन भविष्य में नहीं करेगी। विभागीय नियमों का यदि आगे पालन नहीं किया जाता है तो संस्था 50 हजार रुपए का अर्थदंड भुगतने के लिए वचनबद्ध है। इसके मद्देनजर संस्था की मान्यता बहाल कर दी जाए। सूत्रों का कहना है कि विभाग में मान्यता बहाली के प्रयास भी तेज हो गए हैं। सीहोर कलेक्टर अजय गुप्ता ने बताया कि संस्था ने शासन को अभ्यावेदन दिया था, जिसमें उसने बताया कि केंद्र सरकार से जो अनुदान मिलता है, उस राशि से नशामुक्ति का काम कर रहे थे। कोई धोखाधड़ी नहीं की है, जितना अनुदान मिला, उसका उपयोग इलाज में किया है। निजी तौर पर भी इलाज कर रहे हैं और इसके लिए शुल्क लेते हैं। कलेक्टर ने कहा कि जब हमने सत्यापन करना तो यह बात सही पाई गई। उधर, वित्त विभाग प्रदेशभर के एनजीओ को दिए जा रहे अनुदान की पड़ताल कर रहा है। इसके लिए सभी विभागों से 11 नवंबर तक तीन साल का रिकॉर्ड तलब किया गया था। सूत्रों का कहना है कि ज्यादातर विभाग से जानकारी आ गई हैं। अब इनका परीक्षण करके सरकार को रिपोर्ट दी जाएगी।