हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, निबंधकार, कहानीकार, आलोचक और उपन्यासकार गजानन माधव मुक्तिबोध एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं, जिनकी ज्यादातर रचनाएं देहांत के बाद छपीं। वे जीवन भर लिखते रहे और उनकी लिखी रचनाएं उनके जाने के बाद अमर हो गईं। कहानी, निबंध और कविता संग्रहों का पांच प्रकाशन खुद ज्ञानपीठ ने किया है। उनका निधन 11 सितंबर, 1964 को हुआ। उसी साल ही सबसे पहले ज्ञानपीठ ने कविता संग्रह ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ प्रकाशित किया। इसके बाद 1964 में ही दो निबंध संग्रह सामने आए। फिर 1982 तक लगातार उनकी रचनाओं के संग्रह प्रकाशित होते गए। 13 नवंबर को मुक्तिबोध की 102वीं जयंती है। मध्यम परिवार और मध्यम शिक्षा के बीच मुक्तिबोध में खुद ही कब साहित्यिक पौधे उग जाए, उन्हें पता नहीं चला।
उन्हें प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच का सशक्त माध्यम माना जाता है। मध्यप्रदेश के श्योपुर में उनका बचपन खूब ठाठ से बीता था। पिता माधवराव और माता पार्वती से खूब स्नेह मिला। तब उन्हें ‘बाबू साहब’ कहा जाता था। पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे। इस कारण तबादलों के बीच उनकी शिक्षा में लगातार व्यवधान भी पड़ा। उनके साहित्य से जुड़ने की बात भी दिलचस्प है। वे मिडिल स्कूल में फेल हो गए। इसे उन्होंने चुनौती के रूप में स्वीकार किया और साहित्य लेखन में जुट गए। उनके जीवन में केवल एक कविता ‘तार सप्तक’ का प्रकाशन हुआ और फिर मृत्यु से ठीक पहले श्रीकांत वर्मा ने ‘एक साहित्यिक की डायरी’ का प्रकाशन किया। मृत्यु के बाद ज्ञानपीठ, विश्व भारती, राजकमल ने उनकी रचनाओं का प्रकाशन किया। छह खंडों में प्रकाशित मुक्तिबोध रचनावली सबसे तेज बिकी थी।