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बच्चों के लिए खोला गया है डिजिटल नाइट स्कूल …

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अंबिकापुर। स्कूली शिक्षा के लिए शासन स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं पर आज भी ऐसे गांव हैं, जहां के बच्चे किताबी ज्ञान पाने के लिए मोहताज हैं। ऐसे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने का काम चौपाल ग्रामीण विकास एवं शोध संस्थान ने किया है। चौपाल की ओर से सरगुजा जिले के लखनपुर और बतौली ब्लॉक के चार ऐसे केंद्रों में बच्चों के लिए डिजिटल नाइट स्कूल खोला गया है, जहां के बच्चे शिक्षा की धारा से दूर होते चले जा रहे थे, कहा जाए तो कई ने स्कूल की ओर रूख ही नही किया। शिक्षक की कमी महसूस न हो इसके लिए गांव के पढ़े-लिखे बेरोजगार युवकों को बच्चों को शिक्षा में पारंगत करने की जिम्मेदारी दी गई है। ऐसे में पहाड़ी कोरवा और पंडो परिवार के बच्चे किताब ही नहीं टेबलेट के माध्यम से डिजिटल ज्ञान प्राप्त कर अपना भविष्य गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड अंतर्गत पहाड़ पर बसे ग्राम ख़िरखिरी में डिजिटल नाइट स्कूल का संचालन चौपाल द्वारा किया जा रहा है। गांव में बिजली की व्यवस्था नहीं होने के कारण पंडो बाहुल्य क्षेत्र के आदिवासी बच्चों को टेबलेट एवं प्रोजेक्टर की मदद से शिक्षा दी जा रही है।

पहाड़ के ऊपर बसाहट होने व नजदीकी स्कूल जाने में बच्चों को होने वाली परेशानियों को देखते हुए यह सुविधा उपलब्ध कराई गई है।ख़िरखिरी ब्लॉक मुख्यालय से 22 किलोमीटर एवं जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दूरी पर बसा ग्राम है। लोसंगा पंचायत से 12 किलोमीटर के फासले पर बसे इस पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव में कुल 31 परिवार के 153 लोग निवास करते हैं, जिसमें से 21 परिवार पंडो, पांच उरांव, दो गोड़, एक कुम्हार एवं एक चिकवा जाति के हैं। पंडो परिवार को सरकार द्वारा विशेष रूप से कमजोर जनजाति का दर्जा दिया गया है। इस गांव में पांच व्यक्ति 12वीं पास है। पंडो बाहुल्य इस गांव का एक भी व्यक्ति सरकारी नौकरी में नहीं है। गांव में आंगनबाड़ी की सुविधा से बच्चे महरूम है। इन परिस्थितियों के बीच चौपाल के गंगाराम पैकरा की पहल पर गांव के जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, उनके लिए बेयरफूट कॉलेज तिलोनिया की मदद से जुलाई 2017 से डिजिटल स्कूल का संचालन किया जा रहा है। यहां बच्चों को टेबलेट एवं सोलर प्रोजेक्टर की मदद से डिजिटल शिक्षा मिल रही है। जिन बच्चों ने पेंसिल पकड़ना नहीं सीखा था, वे टेबलेट चलाने में पारंगत हो गए हैं। पढ़ाई के लिए बच्चे एक नीयत समय पर सुबह-शाम जुटते हैं।

चौपाल का प्रोजेक्ट एक निर्धारित अवधि के लिए है, इसके बाद बच्चों के लिए डिजिटल तो दूर किताबी शिक्षा भी दिवास्वप्न बनकर रह जाएगा। वर्ष 2019 में चौपाल ने रेम्हला के ही भुरकुड़वा में डिजिटल नाइट स्कूल का संचालन शुरू किया है, यहां कुल 25 परिवार निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या 127 है। स्कूली बच्चों की संख्या 24 है। शासकीय स्कूल से डिजिटल नाइट स्कूल की दूरी 5 किलोमीटर है, यहां 10 पहाड़ी कोरवा बच्चे डिजिटल शिक्षा ले रहे हैं।2019 में ही बतौली विकासखंड के टिरंग पंचायत अंतर्गत खूंटापानी में डिजिटल स्कूल खोला गया। यहां 40 परिवार निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या 200 है। गांव से शासकीय स्कूल की दूरी पांच किलोमीटर है। इस डिजिटल केंद्र में 24 पहाड़ी कोरवा बच्चे और बांसाझाल में खोले गए केंद्र में 34 पहाड़ी कोरवा बच्चे डिजिटल शिक्षा ले रहे हैं। बांसाझाल में कुल 21 परिवार निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या 125 है। स्कूल की दूरी लगभग 4 किलोमीटर है।

समुदाय आधारित प्रबंधन- डिजिटल नाइट स्कूल का प्रबंधन समुदाय आधारित है। इसकी देखरेख और निगरानी के लिए समिति का गठन किया गया है। समुदाय ने तय किया है कि घरेलू एवं खेत का काम निपटाने के बाद सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक का समय बच्चों की शिक्षा के लिए होगा। वर्तमान में यहां कक्षा एक में दो बच्चे, कक्षा दो में सात बच्चे, कक्षा तीन में चार और चौथी में चार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। बच्चों को बेहतर डिजिटल तालीम मिल सके इसके लिए गांव के ही दो लड़कों को तिलोनिया में 15 दिवसीय प्रशिक्षण भी दिलाया गया है। गांव तक पहुंचने के लिए राजस्व ग्राम रेम्हला तक ही सड़क का निर्माण हुआ है। यहां से ख़िरखिरी गांव तक पहाड़ की चढ़ाई से होकर पांच किलोमीटर कच्ची पगडंडी से होकर जाना पड़ता है। जिम्मेदारों की अनदेखी से हारकर गांव के लोगों ने वर्ष 2016 में श्रमदान करके चार पहिया जाने लायक कच्ची सड़क का निर्माण किया है, लेकिन हर वर्ष बरसात के बाद श्रमदान करके इसे सुधारने की स्थिति बनती है। पगडंडी के बीच से नाला गया है, जिस पर पुल का निर्माण नहीं हो पाया है। बरसात में दोपहिया वाहन जाने योग्य भी यह मार्ग नहीं रहता। आज की स्थिति में ख़िरखिरी ग्राम में छह से 10 वर्ष के 23 बच्चे हैं। इन बच्चों के लिए गांव में पढ़ने के लिए कोई सरकारी सुविधा नहीं है। सबसे नजदीकी प्राथमिक स्कूल पहाड़ उतरने के बाद रेम्हला में है। गांव के कुछ बच्चे आने-जाने में में होने वाली परेशानी के कारण स्कूल नहीं जाते हैं। कुछ बच्चे स्कूल जाते भी हैं तो आने-जाने के दौरान जंगली जानवरों का डर हमेशा बना रहता है। ऐसे में शिक्षित समाज की संरचना के सरकारी प्रयास कितना सफल हो रहे हैं, इसकी कल्पना की जा सकती है।

आजादी के 72 साल बाद भी सरकार इस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंचा पाई है। दुर्भाग्य ही कहा जाए कि दीनदयाल उपाध्याय ग्राम विद्युतीकरण योजना शुरू हुए पांच वर्ष बीत गए लेकिन सरकारी तंत्र के ऊंचे-ऊंचे दावों के बाद भी ख़िरखिरी गांव के लोगों की किसी ने सुध नही ली।बिजली के अभाव में लोग मिट्टीतेल से ही रोशनी किया करते थे। मिट्टीतेल भी आसानी से इन्हें नसीब नही होता था, जिससे हमेशा सर्पदंश, कीड़े-मकोड़े, जंगली जानवर का भय बना रहता था। चौपाल ने बेयरफुट कॉलेज तिलोनिया की मदद से सोलर लाइट की व्यवस्था करके इसे दूर किया है “सरगुजा जिले के बतौली और लखनपुर ब्लाक में चार डिजिटल नाइट स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। ख़िरखिरी गांव में सभी परिवार बीपीएल की श्रेणी में आते हैं। गांव के बच्चों को शिक्षा की धारा से जोड़ने चौपाल ने एक प्रोजेक्ट के तहत बच्चों के लिए डिजिटल स्कूल शुरू किया है। प्रोजेक्ट बंद न हो इसका प्रयास है। वर्ष 2017 से लगातार इसका संचालन किया जा रहा है। तीन केंद्र वर्ष 2019 में शुरू किए गए हैं।”

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