बस्तर दशहरा के प्रमुख विधान काछनगादी में जिन नाबालिग कन्याओं को देवी स्वरूपा बेल के कांटे में झुलाया जाता है, उन्हें बस्तरवासी देवी स्वरूपा मानते हैं। यह कन्याएं जहां कहीं भी जाती हैं, लोग श्रद्धावश इनका चरण स्पर्श करते हैं। इन बालिकाओं का कहना है कि वह भले ही रण की देवी थीं पर अब शिक्षा को शस्त्र बनाकर अपनी जिंदगी संवारने में लगी हैं। लोगों की आस्था अपनी जगह है इसलिए अगर कोई उन्हें आज भी देवी समझ सम्मान देता है तो वह भी उनका आदर करती हैं। बस्तर दशहरा के दौरान भंगाराम चौक स्थित काछन गुड़ी में एक नाबालिग लड़की को काछन देवी के रूप में श्रृंगारित कर बेल कांटा के झूले में झुलाया जाता है। बीते 20 सालों में उर्मिला, कुंती, विशाखा और अनुराधा काछन देवी बनती आ रही हैं। इनमें अनुराधा अभी भी काछन देवी बन रही है। शेष बालिकाएं अध्ययनरत हैं। पर्व के दौरान काछन गुड़ी पहुंची इन बालिकाओं ने नईदुनिया से चर्चा में बताया कि लोग आज भी उन्हें देवी स्वरूपा मान चरण स्पर्श करते हैं।
काछनगादी की परंपरा सामाजिक समरसता का बेहतर उदाहरण है और यह परंपरा जीवित रहनी चाहिए। छह वर्षों तक काछन देवी बनने वाली दंतेश्वरी वार्ड की कुंती ने बताया कि वह दंतेश्वरी कॉलेज में बीए कर रही हैं और सरकारी जॉब करना चाहती हैं इसलिए उनका पूरा ध्यान पढ़ाई की तरफ है। वहीं सात वर्षों तक काछन देवी बनीं मारेंगा की विशाखा बताती हैं कि यह सही है कि लोग उन्हें भी देवी की तरह सम्मान देते हैं परन्तु तब उसे अटपटा लगता है, जब कोई वृद्धजन उनके सामने झुकता है। इधर पांच वर्षों तक काछन देवी बनी उर्मिला ने बताया कि वह ग्रेजुएट हो चुकी हैं और फिलहाल प्राइवेट जॉब कर रही हैं। उसकी इच्छा भी सरकारी नौकरी पाने की है।
उर्मिला का मानना है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में गरीब परिवार के बच्चे पिछड़ जाते हैं इसलिए पढ़ाई में तल्लीनता बहुत जरूरी है। सिर्फ आरक्षण का लाभ प्राप्त कर हम वाजिब लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते। इधर पांचवी बार काछन देवी बनी मारेंगा की अनुराधा का कहना है कि देवी बनना उसे अच्छा लगता है और इसी तरह का सम्मान भविष्य में भी चाहती है इसलिए वह अच्छी पढ़ाई कर शिक्षिका बनना चाहती है। अभी वह मारेंगा प्राइमरी स्कूल में पांचवी की छात्रा है।