Home आस्था आजादी के बाद से ही यहां मना रहे दशहरा—

आजादी के बाद से ही यहां मना रहे दशहरा—

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भिलाई तीन के इतिहास में जाने क्या-क्या छिपा है। उसी में से एक है ऐतिहासिक रावण दहन। आजादी के महज सात साल बाद यहां रावण दहन की परंपरा शुरू हुई। जो आज भी अनवरत जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि हर साल आयोजन भव्य से भव्यतम होता जा रहा है।जिसे आज हम भिलाई तीन का अधूरा मिनी स्टेडियम ग्राउंड के रूप में जानते हैं, वह कभी दशहरा मैदान हुआ करता था। बाद में यह फुटबॉल ग्राउंड और फिर मिनी स्टेडियम बना। हालांकि मिनी स्टेडियम आज भी अधूरा है। बुजुर्ग बताते हैं कि आजादी के समय तक सिर्फ शीतला पारा व आजाद चौक ही पुराना मोहल्ला था। शीतलापारा सबसे पुराना मोहल्ला है। यहीं के लोगों ने 15 अगस्त 1947 में आजादी का प्रतीक जय स्तंभ पत्थर भिलाई तीन बाजार में गाड़ा था। प्रतीक आज भी है। बस सहेजने की आवश्यकता है।

1954 में पहली बार जला रावण– आजादी के सात साल बाद 1954 में जब भिलाई इस्पात संयंत्र की नींव पड़ रही थी, तब भिलाई तीन में भी रावण दहन की शुरुआत हुई। शीतलापारा के बुजुर्ग लेखराम मढ़रिया, रोहित वर्मा, रामलाल पटेल, पुनाराम निर्मलकर ने इस परंपरा की नींव रखी। तब भिलाई तीन की आबादी महज 20 से 25 हजार ही थी। पहली बार ग्रामीणों के सहयोग से धूमधाम से रावण दहन किया गया। इन 65 साल में बहुत कुछ बदल गया। भिलाई तीन कस्बा से शहर हो गया। ग्राम पंचायत से नगर निगम तक का सफर तय कर चुके भिलाई तीन में रावण दहन की परंपरा उसी अंदाज में आज भी कायम है। परंपरा की शुरुआत करने वाले ज्यादतर लोग अब नहीं रहे। कुछ लोग आज भी है, पर अब उनकी जगह अब उनकी पीढ़ी ने कमान संभाल ली है। दूसरी पीढ़ी में भिलाई चरोदा के सभापति विजय जैन, नीलकमल बघेल, पार्षद दिलीप पटेल, फिरोज फारुकी, बदरा बाई यादव, मिट्ठू मेघवानी, विजय लोहाणा, सुशील शर्मा, दीपक देवांगन, संजय ठाकुर, गोपाल महतो, विपिन चंद्राकर, वरुण यादव, केसरीनंदन वर्मा आदि सफलतापूर्वक इसका संचालन कर रहे हैं। आज भिलाई तीन का दशहरा अपने भव्यतम आयोजन के लिए जाना जाता है। भिलाई तीन के इस विजय दशमी उत्सव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय, दुर्ग लोकसभा सांसद विजय बघेल, पूर्व पालिका अध्यक्ष शशिकांत बघेल, सीता साहू, महापौर चंद्रकांता मांडले शामिल होते रहे हैं। दशहरा उत्सव में 50 फीट का रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के साथ भव्य आतिशबाजी देखने लायक होती है। इसके अलावा शीतला पारा से कार्यक्रम स्थल तक जय श्रीराम व जय लंकेश का नारा लगाते आने वाली राम व रावण की टोली खास होती है। मंच पर राम व रावण संवाद भी काफी रोचक होता है।

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