जगदलपुर। बस्तर राजपरिवार के सदस्य परंपरानुसार शनिवार शाम काछनगुड़ी पहुंचे और रण की देवी से दशहरा मनाने की अनुमति मांगी। इसके पहले काछन देवी के प्रतिरूप में एक बालिका को बेलकांटा के झूले में झुलाया गया। बस्तर दशहरा के इस अनोखे विधान को देखने हजारों लोग जुटे।
बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म काछनगादी शनिवार शाम भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में संपन्न हुई। इसके पहले राजमहल से राज परिवार के सदस्य जुलूस के साथ काछनगुड़ी पहुंचे और गर्भगृह में बैठ माता की आराधना की।
तत्पश्चात अनुराधा नामक बालिका को देवी के रूप में मंदिर के सामने बांधे गए बेल कांटा वाले झूले की परिक्रमा कराई गई। इसके बाद देवी स्वरूपा बालिका को कांटेदार झूले में लिटाकर झुलाया गया। इस विधान के बाद रण की इस देवी के साथ बस्तर महाराजा का सांकेतिक युद्ध हुआ
देवी ने बस्तर राजपरिवार के सदस्यों को दशहरा मनाने की अनुमति दी। इस मौके पर दंतेश्वरी वार्ड की महिलाओं ने धनकुल वाद्य के साथ काछन जात्रा गीत गाया। इस मौके पर राज्य परिवार के सदस्यों के अलावा विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य मांझी- चालकी, मेंबर- मेंबरीन मौजूद रहे।
बस्तर दशहरा मनाने जिस दिन काछन देवी से अनुमति मांगी जाती है, उसी दिन देर शाम रेला देवी को भी याद कर उन्हें बस्तर दशहरा में आमंत्रित किया जाता है। गोल बाजार में अमावस्या की रात रैला देवी जात्रा संपन्न होती है।
बताया गया कि बस्तर की एक राजकुमारी का नाम रैला देवी था, जिसे मिरगान जाति के लोगों ने आश्रय दिया था परंतु राजकुमारी ने पारिवारिक उपेक्षा के चलते गोदावरी में आत्महत्या कर ली थी।
अपनी प्रिय राजकुमारी की याद में इस जाति के लोग प्रतिवर्ष रैला पूजा आयोजित करते हैं तथा उन्हें बस्तर दशहरा में सम्मान देते हैं। इस मौके पर दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी तथा मांझी- सेवादारों ने गोल बाजार पहुंच रैला पूजा विधान संपन्न करवाया।