छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग का पत्रकारों के प्रति द्वेष की भावनाएं भरी हुई हैं। क्योंकि पुलिस विभाग को सच्चाई हजम नहीं होती। भले पुलिस विभाग 100 प्रतिशत गलत करे, उसके विरूद्ध आवाज उठाना उसके गले की फांसी बन जाती है। कहीं-कहीं सुनने को या देखने को मिलता है कि पुलिस विभाग का कोई भी अधिकारी किसी जिले में जाता है तो उनका स्टोनो दूसरे जिले के स्टोनों से मोबाइल पर फोन करके बोलता है कि हम आ रहे हैं हमारा ये पैसा तैयार रखना। ये पुलिस विभाग का कौन सा नियम है कि इस प्रकार के करतूतों से समाज में इस विभाग की शाख गिरती जा रही है। जबकि सन् 1984 का मध्यप्रदेश सरकार के गृहमंत्रालय का निर्देश था। 1984 में ये आदेश कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक को दिया गया था कि समाचार प्रकाशन के दौरान किसी भी संपादक व पत्रकार को सुरक्षा मुहीम कराई जाए। पर छ.ग. पुलिस प्रशासन की लापरवाही से छ.ग. में पत्रकारों की हत्याएं एवं समाचार प्रकाशन को लेकर मार -धाड़ देखा जा रहा है। जबकि समाज का आईना पत्रकार चैथा स्तंभ कहलाता है। आज देखने को मिल रहा है पुलिस विभाग की लापरवाही एक प्रश्नचिह्न बन चुकी है। जब समाचार को लेकर पत्रकार की हत्या हो जाए या समाचार प्रकाशन को लेकर अपराधी मारें तो पुलिस पत्रकार की रिपार्ट लिखने को तैयार नहीं होते। जब कोई पत्रकार किसी भी पत्रकार के समर्थन में समाचार प्रकाशित करता है तो पुलिस विभाग द्वारा उस पत्रकार को किस नियम के अंतर्गत नोटिस दिया जाता है। पुलिस विभाग द्वारा खुली दादागिरी देखी जा रही है जबकि भारत के प्रधानमंत्री का कहना है किसी पत्रकार को कोई भी व्यक्ति धमकी देता है तो उसके ऊपर 24 घण्टों मे कार्यवाही की जाएगी और जुर्माना भी लगेगा। पर प्रधानमंत्री के नियमों का किसी राज्य में धमकी देने वालों के ऊपर कोई कार्यवाही किया गया। पर छ.ग. में पत्रकारों के ऊपर अत्याचार तो हुआ। पत्रकारिता के नाते या समाचार प्रकाशन को लेकर उसकी सच्चाई को प्रकाशित करने पर ऐसे भी पत्रकार हैं जिसके ऊपर पुलिस ने द्वेषपूर्ण समाचार प्रकाशन को लेकर अपराध पंजीकृत किया है। पुलिस की विचारधारा अपराधियों को नहीं मिटाना, पत्रकारों को मिटाना उनका उद्देश्य है। सभी पत्रकार बंधु एक नहीं होंगे तो पुलिस विभाग पत्रकारों के ऊपर फर्जी मामले बनाते रहेंगे। जबकि हमारे छ.ग. में पुलिस विभाग से ज्यादा पत्रकार पाये जाते हैं। पर पत्रकार, पत्रकार को ही नहीं समझ रहे हैं। पत्रकारों को एक जुटता बनाए रखना चाहिए।
माननीय राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री, गृह मंत्री महोदय तक को अवगत कराया गया है। जिसकी रसीद संलग्न है।