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जानिए हरियाली तीज के लिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व…..

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वशिष्ठ टाइम्स।।
आप सभी देश वासियों को वशिष्ठ टाइम्स समाचार पत्र की ओर से हरियाली तीज की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाईयां……

हरियाली तीज का पर्व हिन्दू धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए बेहद खास है तीज पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन की याद में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन-भर व्रत-उपवास रखती हैं।
हरियाली तीज सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।
हरियाली तीज की तिथि और शुभ मुहूर्त

हरियाली तीज की तिथि- 03 अगस्त 2019
हरियाली तीज की तिथि आरंभ- 03 अगस्तक 2019 की सुबह 07 बजकर 06 मिनट से
हरियाली तीज की तिथि समाप्त – 04 अगस्त 2019 की सुबह 03 बजकर 36 मिनट तक।
हरियाली तीज का महत्व

हरियाली तीज को ‘छोटी तीज’ और ‘श्रावण तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। सावन में पड़ने वाली यह तीज सुहागिन स्त्रियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह त्योहार पति के प्रति पत्नी के समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन गौरी-शंकर की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सुहागिनों के पति दीर्घायु होते हैं और लड़कियों को मनचाहा वर मिल जाता है। आपको बता दें कि सुहागिन महिलाओं के बीच तीज पर्व का खास महत्व है। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पूरे तन-मन से करीब 108 सालों तक घोर तपस्यां की। पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। तीज पर्व पार्वती को समर्पित है, जिन्हें ‘‘तीज माता’’ कहा जाता है।

कैसे मनाते हैं हरियाली तीज-
हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं दिन भर व्रत-उपवास करती हैं। साथ ही इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं, जिनमें हरी साड़ी और हरी चूड़‍ियों का विशेष महत्व है। दिन-भर स्त्रियां तीज के गीत गाती हैं और नाचती हैं। हरियाली तीज पर झूला झूलने का भी विधान हैं। स्त्रियां अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलती हैं। कई जगह पति के साथ झूला झूलने की भी परंपरा है। शाम के समय भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के बाद चंद्रमा की पूजा की जाती है। इस दिन सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार का सामान भेंट किया जाता है। खासकर घर के बड़े-बुजुर्ग या सास-ससुर बहू को श्रृंगार दान देते हैं। हरियाली तीज के दिन खान-पान पर भी विशेष ज़ोर दिया जाता है। हालांकि इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन फिर भी बिना मिठाइयों के त्योनहार कैसा। तीज के मौके पर विशेष रूप से घेवर, जलेबी और मालपुए बनाए जाते हैं। रात के समय खाने में पूरी, खीर, हलवा , रायता, सब्जी और पुलाव बनाया जाता है।
हरियाली तीज के लिए जरूरी पूजा और श्रृंगार सामग्री
हरियाली तीज के दिन व्रत रखा जाता है और पूजा के लिए कुछ जरूरी सामान की आवश्य्कता होती है। पूजा के लिए काले रंग की गीली मिट्टी, पीले रंग का कपड़ा, बेल पत्र, जनेऊ, धूप-अगरबत्ती, कपूर, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल, घी,दही, शहद, दूध और पंचामृत चाहिए। वहीं, इस दिन पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है और इसके लिए चूड़‍ियां, आल्ता, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, कंघी, शीशा, काजल, कुमकुम, सुहाग पूड़ा और श्रृंगार की अन्य चीजों की जरूरत होती है।

हरियाली तीज की पूजा विधि
. सुबह उठकर स्नान करने के बाद मन में व्रत का संकल्प लें।
. सबसे पहले घर के मंदिर में काली मिट्टी से भगवान शिव शंकर, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाएं।
. अब इन मूर्तियों को तिलक लगाएं और फल-फूल अर्पित करें।
. फिर माता पार्वती को एक-एक कर सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
. इसके बाद भगवान शिव को बेल पत्र और पीला वस्त्र चढ़ाएं।
. तीज की कथा पढ़ने या सुनने के बाद आरती करें।
. अगले दिन सुबह माता पार्वती को सिंदूर अर्पित कर भोग चढ़ाएं।
. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण करें।

हरियाली तीज की व्रत कथा
हरियाली तीज की व्रत कथा इस प्रकार है- शिवजी कहते हैं, ‘‘हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोलें ‘‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूंं आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैंं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।’’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले। हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।’’
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, ‘‘तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी।
तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली।
तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, ‘‘पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।’’ पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया।’’
भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, ‘‘हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्वर यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं।’’ भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।

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