वशिष्ठ टाइम्स।।
बहुत कम सुनने को मिलता है कि शत्रु सेना किसी सैनिक की बहादुरी की दाद दे और लिखकर कहे कि इस सैनिक की वीरता का सम्मान किया जाना चाहिए। 1999 के कारगिल युद्ध में ऐसा ही हुआ था। जब टाइगर हिल के मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के कैप्टन कर्नल शेर खां ने बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी कि भारतीय सेना ने उनका लोहा माना।
आत्मघाती हमला हाल ही में कारगिल पर एक किताब ‘‘कारगिल अनटोल्ड स्टोरीज़ फ़्राम द वॉर’’ लिखने वाली रचना बिष्ट रावत बताती हैं, ‘‘कैप्टन कर्नल शेर खां नॉर्दर्न लाइट इंफ़ैंट्री के थे।’’
‘‘टाइगर हिल पर पांच जगहों पर उनकी 5 चौकियां थीं। पहले 8 सिख को उन पर कब्ज़ा करने का काम दिया गया था। परंतु वो उन पर कब्ज़ा नहीं कर सके। बाद में जब 18 ग्रेनेडियर्स को भी उनके साथ लगाया गया तो वो एक चौकी पर किसी तरह कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए। लेकिन कैप्टन शेर ख़ाँ ने एक जवाबी हमला किया।’’
एक बार नाकाम होने पर उन्होंने फिर अपने सैनिकों को ‘‘रिग्रुप’’ कर दोबारा हमला किया। जो लोग ये ‘‘बैटल’’ देख रहे थे, वो सब कह रहे थे कि ये ‘‘आत्मघाती’’ था। वो जानते थे कि ये मिशन कामयाब नहीं हो पाएगा, क्योंकि भारतीय सैनिकों की संख्या उनसे कहीं ज़्यादा थी।
ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा का कहना हैं, ‘‘कैप्टन शेर खां लंबा.चौड़ा शख़्स था। वो बहुत बहादुरी से लड़ता था। आख़िर में हमारा एक जवान कृपाल सिंह जो ज़ख्मी पड़ा हुआ था, उसने अचानक उठकर 10 गज़ की दूरी से एक ‘बर्स्ट’ मारा और शेर खां को गिराने में कामयाब रहा।’’
ब्रिगेडियर बाजवा बताते हैं ‘‘हमने वहां 30 पाकिस्तानियों के शवों को दफ़नाया। लेकिन मैंने सिविलियन पोर्टर्स भेजकर कैप्टन कर्नल शेर खां के शव को नीचे मंगवाया, पहले हमने उसे ब्रिगेड हेडक्वार्टर में रखा।‘‘
जब उनकी बॉडी वापस गई तो उनकी जेब में ब्रिगेडियर बाजवा ने एक चिट रखी जिस पर लिखा था, कैप्टन कर्नल शेर खां ऑफ़ 12 एनएलआई हैज़ फ़ॉट वेरी ब्रेवली एंड ही शुड बी गिवेन हिज़ ड्यू। यानी कैप्टन शेर खां बहुत बहादुरी से लड़े और उन्हें इसका श्रेय मिलना चाहिए।