रक्षक बने भक्षक
कहने को पुलिस विभाग आम जनता कि व्यवस्था हैं कि जनता को कोई किसी प्रकार की असुविधा उत्पन होती है सदभावना से सहयोग करना चाहिए पर पुलिस विभाग से आम जनता पुलिस से पिडित हो चुकी हैं किसी व्यक्ति का एक्सीडेन्ट हो जाये या मारपीट या चोरी आपसी विवाद भी हो जाये तो पुलिस आवेदक से बिना पैसा के रिर्पोट नही लिखा जा सकता कही अनावैदक पुलिस विभाग को पैसा अधिक दे देता तो आवेदक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाता हैं यह पुलिस की लोगो मे चरचा हैं पुलिस कि कार्य प्रणाली मंै आज देखा जाये तो पुलिस विभाग के लोग मालामाल हो गये है पुलिस विभाग मे किसी भी पद पर हों 40-50 लाख कि बगला 10-15 लाख कि कार लेना वा 1लाख 35 हजार की मोेेेटरसायकल लेना व 20 ग्राम सोने कि चैन पहनना सोने कि अगुठि पहनना यह पुलिस की कैसी नौकरी जो की 10 साल नही होती करोडों की आसामि बन जाते हैं पुलिस विभाग अपने समकछ से जानकारी ले कि यह पैसा कहा से संचित किया जा रहा हैं या तो विभाग के कुछ लोगो के द्वारा वर्दी के आड मे काले कारनामे वह कोयला बिकवाना जुआ खेलवाना बा्रउन शुगर बिकवाना य वर्दी कि सान के विरूद्व है विभाग इनका जांच का विषय हैं आयुक्त सरगुजा संभाग व पुलिस महानिरक्षक वह पुलिस निरदेशक कि इनकि जांच कि जायें नौकरी नही है राज्य साही डाट हैं कही पुलिस के परीवार मे कोई व्यक्ति पत्रकार हो जाये तो अधिकारी उच्च अधिकारी दबाव मे रहते हैं पत्रकारता समाज का आइना चैथा स्तंम होता हैं जिसको नई पिडी के लोग उसको व्यापार बना के रखे हुए हैं और आईएस व आईपीयस का अपनी टोली बनाकर वह प्रेस वारता मे नई पीडि के विचार धारा को अच्छी भली भास से उपयोेग नही कर पाते अपने को नई पिडि का पत्रकार बोलते हैं बडे शर्म की बात हैं की बडे-बडे बैठे जाये और छोटे-छोटे बह जाये कही भारत सरकार ऐसे दलालों व कमीशन खोरो पर अकुश नही लगा पाई तो पत्रकारता में ऐसे लोग ही रह पायेगेे ेजो पत्रकारता को व्यापार बना कर व अधिकारीयो को धमकी देकर अपना काम व पैसा निकालना यही काम रह जायेगा।