कांग्रेस को यह मंथन करना चाहिए कि 70 साल पुरानी पार्टी को हारने व हराने में स्वयं कांग्रेसी जिम्मेदार है क्योंकि अध्यक्ष का पद लेकर कांच के महलों में बैठ कर राजनिती नहीं होती। एक जिला अध्यक्ष अपने जिले के पार्टी का सर्वोपरी माना जाता है। जैसे किसी भी जिले का कलेक्टर जिले का मालिक होता है टीक उसी भांति जिला अध्यक्ष भी अपने पार्टी का होता है। पार्टी के हार के पश्चात नैतृक्ता के आधार पर सभी को इस्तीफा दे देना चाहिए। और ऐसे अध्यक्ष जो चापलूस व विवादित हों उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेशाध्यक्ष द्वारा हटा कर नये अध्यक्ष न्युक्ति करना चाहिए जो तहसील स्तर, पंचायतों व नगर में अच्छी छवि के साथ-साथ समाजसेवक व ईमानदार हो तथा 24 घंटा पार्टी हित में कार्य करें ।