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राजनितिक में परिवारवाद बना व्यापार का धन्धा ?…………

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हमारे भारतवर्ष में देखने व सुनने को मिलता है कि, एक राजनितिक समाज सेवा नहीं रहा। खाली एक व्यापार बनकर रह गया है। जैसे कि, परिवार में पति, पत्नी, फुफा, मौसा, लड़का, चाचा, भतिजे, बहु और बेटी सभी राजनितिक में लुप्त हो चुके है। क्योंकि इन्होंने अपने परिवार को ही एक संगठन बनाकर रख लिया है। जनता को छलने का एक अच्छा महौल बना लिया है। यहां तक कि, परिवारवाद पंचायत और जिला पंचायत तक पहुंच चुका है। लोगों में चर्चाऐं है कि, जैसे समाजवादी पार्टी एक जाति पार्टी का उदाहरण है, गांधी परिवार एक मिसाल है और लालू परिवार भी एक परिवारवाद है। इसमें जनता का क्या हित ? पर लोगों को खाली आश्वासन देने के आलावा इनके पास कोई चारा नहीं। ऐसे ही कई मिसाले है जो कि परिवारवाद से जनता को ठगने का एक रास्ता है।

लोगों के मत अनुसार, भारत सरकार को नेतागिरी का ऐसा प्रावरूप बनाना चाहिए। जिसमें परिवार का एक ही व्यक्ति राजनितिक का लाभ उठा सके। पर देखने को यह मिलता है कि, एक बार लगाओ और जिंदगी भर खाओ और साथ में घरवालों, परिवारवालो और रिश्तेदारों को भी रास्ता बनाओं वाला सिस्टम हो गया है। एक बार जिस व्यक्ति को राजनितिक में औदा मिल जाता है वह व्यक्ति अपने बहु, बेटी और परिवारों को ही उसी राजनितिक में शामिल कराना चाहता है। और देश को लुटने में कोई भी सोचा विचार नहीं करता है। ऐसे लोग सोच समझकर राजनितिक में घुसे हुए है।

वहीं नेतागिरी में नेताओं के चमचों को लेकर धज्जियां उठ रही है। अपनी आंखों से देखा जा रहा है कि, किसी भी पार्टी का व्यक्ति हो उसके चमचे करोड़ो के आसामी बन जाते है। और नेता भी अरबो में खेलते है। जिनकी सम्पत्ति आपार हो जाती है। ऐसा कैसे हो सकता है कि, एक ही साल में मंत्री और विधायक करोड़ों में खेल रहे हो ? यह समाचार आम जनता के लिए सोचनीय विचार है। यह आमजनता के विचारधाराओं के अनुसार प्रकाशित किया जा रहा है।

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