Home पूजा-पाठ शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, जानिए मां शैलपुत्री की कथा, पूजा...

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, जानिए मां शैलपुत्री की कथा, पूजा और मंत्र……………….

16
0

शारदीय नवरात्रि का पहला दिन सबसे खास माना जाता है। इसका कारण यह है कि, आज ही के दिन देवी की घटस्थापना होती है। इस दिन से लेकर माता रानी की नौ दिनों तक पूजा अर्चना की जाती है। पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और नौ दिनों तक भक्त मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना करते हैं। मां दुर्गा की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही घर में सुख एवं समृद्धि का वास होता है। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के समय 3 दुर्लभ एवं शुभ योग का निर्माण हो रहा है। ऐसे में देवी मां दुर्गा की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। इसीलिए इन्हें शैलपुत्री (हिमालय की पुत्री) कहा जाता है। प्रतिष्ठित पुस्तक के अनुसार, इस दिन की अर्चना में अधिकांश योगी मन की सभी भावनाओं को तिरोहित कर, मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर लेते हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है।

मां के प्रथम स्वरूप देवी शैलपुत्री की पूजा के साथ ही यह नौ दिनों का त्योहार शुरू होता है। 3 अक्टूबर 2024 यानी आज घटस्थापना के साथ माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। मां शैलपुत्री की आराधना करने से वैवाहिक जीवन में स्थिरता आती है। साथ ही जीवन में चल रही उथल-पुथल भी शांत हो जाती है। इसके अलावा सुयोग्य वर की तलाश भी पूरी होती है।

मां शैलपुत्री की कथा 

वास्तव में शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में दक्ष की बेटी सती के नाम से अवतरित हुई थी। भगवान शिव से इनका विवाह भी हुआ। लेकिन इनके पिता ने अपने यहां एक महायज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को उनके हिस्से का यज्ञ भाग ग्रहण करने के निमंत्रित किया गया, लेकिन दक्ष ने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब इस आयोजन की भनक सती को लगी, तब वो इसमें सम्मिलित होने के लिए बेचैन हो गई। उन्हें पिता की शिवजी के प्रति द्वेष होने की भनक तो थी पर फिर भी वहां जाने की जिद्द करने लगी। महादेव ने प्रयत्नपूर्वक उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, पर सती नहीं मानी।

आखिरकार महादेव को अनुमति देनी पड़ी। दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर उन्हें सबकुछ बदला बदला सा लगा। मां को छोड़कर कोई भी उनके आने से प्रसन्न नहीं था। बहने भी उपहास और व्यंग कर रही थीं और पिता कटु वचन बोल रहे थे। इस तरह के व्यवहार की सती ने कल्पना भी नहीं की थी। आम तौर पर शिवजी के सामने उपस्थित रहने वाले देवता अपने हिस्से का यज्ञ भाग खुशी से स्वीकृत कर रहे थे।

इस तरह से पति को तिरस्कृत होता देख, सती को सब असहनीय लगा। उसे समझ आया कि आखिर शिवजी यहां आने के लिए क्यों मना कर रहे थे। क्रोध और पश्चाताप में सती ने बिना एक क्षण की देरी किए योगाग्नि (यज्ञ की अग्नि) से देह त्याग कर दिया।

महादेव ने तब उसी क्षण अपने गणों को भेज उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। वही सती इस जन्म में हिमालय राज की पुत्री शैलपुत्री अथवा पार्वती के रूप में जन्म लेती है। इस देवी की अनंत शक्तियां हैं जिनका उपयोग वे यथासमय करती हैं। आज के दिन किसी एक कुंवारी कन्या को भोजन कराया जाता है और स्त्रियां नारंगी या श्वेत साड़ी पहनती है।

शारदीय नवरात्रि की घटस्थापना के बाद मां शैलपुत्री को लाल चुनरी ओढ़ाएं और फिर देवी को पान के पत्ते पर लौंग और सुपारी रखकर अर्पित कर दें। माना जाता है कि ऐसा करने से परिवार में सुख समृद्धी बढ़ती है।

देवी शैलपुत्री का मंत्र है 

देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

 

 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here