आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, केंद्र को जारी किया नोटिस
आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। हालांकि कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह याचिकाकर्ता की अर्जी पर सुनवाई करेगा। अदालत ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि सरकार ने बिना आंकड़े जुटाए 10 प्रतिशत आरक्षण देने पर मंजूरी दी थी।
याचिका में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती दी गई है। संविधान में इसी संशोधन के जरिए सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण प्रदान किया गया है। इसमें अधिनियम को रद्द करने की मांग करते हुए कहा गया है कि आरक्षण के लिए पिछड़ेपन को सिर्फ आर्थिक स्थिति के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता।
याचिका के अनुसार ‘संवैधानिक संशोधन औपचारिक रूप से उस कानून का उल्लंघन करता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी मामले में अपने आदेश से स्थापित किया था।’
इसमें नौ सदस्यीय पीठ के 1992 के फैसले का हवाला दिया गया है जिसे मंडल केस के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कहा गया था कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, लेकिन हालिया विधेयक में इसका उल्लंघन किया गया है और यह सीमा 60 फीसद तक पहुंच गई है।
याचिका के जरिए संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग भी की गई है। इन्हीं अनुच्छेदों के जरिए सरकार को सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने का अधिकार मिला है।