नरसिंहपुर : जिले के कृषि विज्ञान केंद्र नरसिंहपुर के वैज्ञानिकों के चिकित्सीय टीम ने सोयाबीन, अरहर, गन्ना व मक्का फसलों की फसलों का निरीक्षण कर उनका सर्वेक्षण के उपरांत किसानों को रोग, कीट सर्वेक्षण एवं नियंत्रण के उपाय बताये।
सर्वेक्षण के उपरांत पाया गया कि सोयाबीन की जेएस 21- 72 प्रजाति को छोड़कर लगभग सभी जातियों में आंशिक से 30 प्रतिशत तक पीला मोजक का आपतन पाया गया। साथ ही सोयाबीन की फसल में कहीं- कहीं अल्टरनेरिया एरियल ब्लाइट व ईल्ली का प्रकोप भी मिला। यह पीला मोजक रोग विषाणु के द्वारा उत्पन्न होता है, जिसका फैलाव सफेद मक्खी द्वारा किया जाता है। यदि किसान रोग फैलने वाले सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लें, तो रोग का प्रसारण नहीं हो पायेगा।
केन्द्र के पादप संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. एसआर शर्मा ने फसलों में कीट और रोगों के नियंत्रण के लिए नाशको के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थायोमेथाक्जाम 125 से 150 ग्राम प्रति हेक्टेर या ऐसीटामीप्रिइड 125 से 150 ग्राम प्रति हेक्टेर दस दिन के अंतर पर या फीप्रोनील प्लस इमिडाक्लोप्रिड 200 से 250 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करके नियंत्रण कर सकते हैं। यह याद रहे कि 10 दिन के अंतराल पर कीटनाशकों को बदलकर कम से कम दो छिड़काव करें। एरियल ब्लाइंट रोग के नियंत्रण के लिए टेबूकोनोजोल प्लस मेंकोजेब के 400 से 500 ग्राम प्रति हेक्टेर प्रयोग करें। जिस खेत के सोयाबीन में सफेद मक्खी या इल्ली दोनों का प्रकोप हो, तो उसके नियंत्रण के लिए किसान थायोमेथाक्जाम प्लस लेमडाहेलोथ्रीन 80 से 100 मिली लीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करके नियंत्रण कर सकते हैं। यह दवा उपलब्ध नहीं होती है, तो इमिडाक्लोप्रीड प्लस बीटा साईफ्लोथ्रिरीन 150 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
गन्ने में सर्वेक्षण के उपरांत पाया गया कि सभी क्षेत्रों में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है। सफेद मक्खी के प्रभाव से 5 से 10 प्रतिशत तक गन्ने की उपज वह एक से दो प्रतिशत तक चीनी प्रतिशत कम हो सकता है। इसकी पहचान के लिए किसानों को देखना होगा कि गन्ने की पत्तियां पीली पड़ती है। गन्ने की पत्तियों के पीछे सफेद काली उभरी कतार में संरचना बनकर चिपकी रहती है, जो रगड़ने पर काले रंग का दिखेगा। कभी- कभी ज्यादा प्रकोप होने पर काला पाउडर पत्तियों पर दिखाई देता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया गन्ने में बाधित होती है। इसके नियंत्रण के लिए थाईओमेथाकजाम 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी 150 ग्राम प्रति एकड़ या डिफेनथुरान 250 ग्राम प्रति एकड़ 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अगर यह दवा भी प्राप्त नहीं होती है, तो फिप्रोनिल प्लस इमिडाक्लोप्राइड 40 प्रतिशत को 150 से 200 मिली लीटर दवा 300 लीटर पानी में मिलाकर के छिड़काव करें। ऐसा देखा जाता है कि किसान गन्ने में नाइट्रोजन खाद का प्रयोग ही ज्यादातर करते हैं। जहां नाइट्रोजन खाद का ज्यादा प्रकोप होता है या खेत में पानी लगता है। वहां सफेद मक्खी का प्रकोप ज्यादा होता है। किसान यह ध्यान रखें कि गन्ने के लिए संस्तुत नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश तीनों खादो को मिलाकर प्रायः बुवाई के प्रयोग करें।
मक्के की फसल में फालआर्मीवर्म का प्रभाव कहीं- कहीं दिख रहा है। फॉलआर्मीवर्म मक्के की फसल के लिए बहुत ही नुकसानदायक कीट है। यह पत्तियों के गोफन में घुसकर खाता है, ये भुट्टे को भी नुकसान करता है जिससे भुट्टे का बाजार में दर कम हो जाता है। इसके नियंत्रण के लिए ऐमामेक्टिन बेंजोएट 80 ग्राम प्रति एकड़ या प्रोफेनोफास प्लस साइपरमैथ्रीन 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। अरहर की फसल में कहीं-कहीं स्टेरीलिटी मोजेक रोग दिखाई दे रहा है। इसमें अरहर की पत्तियां छोटी पीली पड़ जाती हैं। शाखाएं कम निकलती है और बहुत ही कम फूल और फल आते हैं। यह रोग विषाणु के द्वारा उत्पन्न किया जाता है, जिसका प्रसारण माइट के द्वारा होता है। अतः माइट (लाल मकड़ी) को नियंत्रित करना अति आवश्यक है। लाल मकड़ी के नियंत्रण के लिए प्रोपेजाइट 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के साथ या एबोमेक्टीन 0.75 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या बाईफेनाजेट एक मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। यदि हेकसीथीओक्स उपलब्ध हो, तो 1- 1.25 मिली लीटर/ पानी के साथ छिड़काव करें। किसान भी जानते हैं कि माइट का प्रकोप होने पर पत्तियां नीचे की तरफ उल्टी नाव जैसी बनाती है और इसके नियंत्रण के लिए उपरोक्त रसायनों के साथ ही कुछ कीटनाशक जैसे डाईफेनथुरान, इमिडाक्लोप्रीड या प्रोफेनोफॉस साइपमेथ्रीन का भी प्रयोग कर सकते हैं।