Makar Sankranti 2019: क्या आप जानते हैं कि इस दिन खिचड़ी क्यों बनाते हैं?
आयुर्वेद में भी खिचड़ी का ज़िक्र मिलता है. चरक संहिता के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने का काल ऊर्जा संचरण का काल है, जिसकी शुरुआत खिचड़ी से होती है
मकर संक्रांति शायद एक इकलौता ऐसा त्योहार है जिसका नामकरण किसी खाने के व्यंजन पर भी है. इसी बात को ऐसे भी कह सकते हैं कि खिचड़ी ऐसा भोजन है जिसके नामपर एक त्योहार है. अगर आप न जानते हों तो बता दें कि गोरखपुर और देश में कई जगहों पर मकरसंक्रांति को खिचड़ी के त्योहार के तौर पर मनाते हैं.
इस दिन मेला लगता है और खिचड़ी बनाई जाती है. मिथकीय कथा है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को अपने लिए भोजन बनाने का समय नहीं मिल रहा था. इसलिए बाबा गोरखनाथ ने सारी सब्ज़ियों को दाल, चावल और मसालों के साथ पकाया. इस तरह खिचड़ी बनी.
मिथक को परे रख कर प्रकृति की बात करते हैं. मकर संक्रांति आहट देती है कि कुछ ही दिन बाद बसंत आने वाला है. ऐसे में गर्म तासीर वाली खिचड़ी ऐसा खाद्य है जो शरीर को पोषण ग्रहण करने में मदद करता है. वैसे तो खिचड़ी की बहुत सारी खूबिया हैं, मगर खिचड़ी में बसंत ऋतु की कई खूबियां हैं.
बसंत का रंग पीला होता है, खिचड़ी भी पीली होती है. बसंत को कोमल मगर अंदर तक मार करने वाला कहा जाता है, खिचड़ी भी नर्म होने के बावजूद अंदर तक गर्मी देती है. बसंत प्रेम की ऋतु है, खिचड़ी के भी चार यार होते हैं; पापड़, घी, दही और अचार.
खिचड़ी को साल 2017 में सुपर फूड का दर्ज़ा दिया गया. लेकिन खिचड़ी इस तरह के दर्ज़ें से परे है. खिचड़ी छोटे बच्चे को दिया जाने वाला पहला कठोर (सॉलिड) आहार है. खिचड़ी बीमारी में आसानी से पचने वाला पौष्टिक आहार भी है. अधिक्तर मौकों पर खिचड़ी शाकाहारी होती है, लेकिन हलीम जैसे मांसाहारी खिचड़ी के विकल्प भी मौजूद हैं.
इतिहास में सिर्फ़ बीरबल की खिचड़ी ही नहीं थी. भारत आने वाले तमाम विदेशी मुसाफ़िरों ने खिचड़ी का ज़िक्र किया है. ज़्यादातर के मुताबिक यह खेतिहर मज़दूरों का शाम का खाना था. केटी आचाया की ‘डिक्शनरी ऑफ़ इंडियन फ़ूड’ के मुताबिक इब्न बतूता, अब्दुर्र रज़्ज़ाक और फ्रांसिस्को प्लेज़ार्ट ने खिचड़ी के बारे में लिखा है.
1470 के एक रूसी यात्री अखन्सय निकितिन के मुताबिक उस समय खिचड़ी घोड़ों को भी खिलाई जाती थी. वैसे आयुर्वेद में भी खिचड़ी का ज़िक्र मिलता है. चरक संहिता के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने का काल ऊर्जा संचरण का काल है, जिसकी शुरुआत खिचड़ी से होती है.
मुगल बादशाहों को खिचड़ी काफ़ी पसंद थी. अकबर की रसोई में बनने वाली खिचड़ी में दाल, चावल और घी बराबर मात्रा में पड़ता था. वैसे आइने-अकबरी में 7 तरह की खिचड़ी का ज़िक्र मिलता है. खिचड़ी जहांगीर का प्रिय शाकाहारी खाना था. जहाँगीर को गुजराती खिचड़ी पसंद थी जिसे लज़ीज़ां कहा जाता था और उसमें कई मसाले और मेवे पड़ते थे.
इनके अलावा खिचड़ी को अंग्रेज़ों ने भी अपनाया. उन्होंने उसमें अंडे और मछली मिलाकर केडगेरी नाम का नाश्ता बना डाला. इसके अलावा मिस्र में कुशारी पकाया जाता है जो खिचड़ी से मिलता है, इब्नबतूता ने भी किशरी का ज़िक्र किया था. ये सारे नाम खिचड़ी की विकास यात्रा की कहानी की तरफ़ इशारा करते हैं.
तमाम तरह की खिचड़ी
देश भर में खिचड़ी के कई अलग रूप हैं. इनकी बात करने से पहले बता दें कि तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल कहा जाता है. पोंगल भी एक तरह का पकवान हे जिसे चावल, मूंगदाल, दूध और गुड़ डालकर पकाते हैं. उत्तर प्रदेश में मूंगदाल की खिचड़ी बनती है. बंगाल की खिचड़ी में इस मूंग की दाल को भूनकर सुनहरा कर लिया जाता है. बंगाल में दुर्गा पूजा में मां दुर्गा को भोग में खिचड़ी ज़रूर चढ़ाई जाती है.
राजस्थान और गुजरात में बाजरे की खिचड़ी लोकप्रिय है. हैदराबाद, दिल्ली और भोपाल जैसे शहरों में दलिया और गोश्त को मिलाकर खिचड़ा और हलीम पकता है. भगवान जगन्नाथ के 56 भोग में शामिल है. तो मराठी साबूदाने की खिचड़ी का स्वाद नाश्ते के लिए बिलकुल सही रहता है.
महाराष्ट्र में झींगा मछली (प्रॉन) के साथ एक खास तरह की खिचड़ी बनती है. गुजरात के भरूच में खिचड़ी के साथ कढ़ी पेश की जाती है. सर्दी में खूब सारे देसी घी, काली मिर्च और जीरे के साथ खाई खिचड़ी अच्छी लगती है, तो बीमारी से उबरते समय कम घी के साथ पतली खिचड़ी की सलाह दी जाती है.
जो भी हो मकर संक्रांति आने वाले बसंत की आहट है. इस दिन मूंग की दाल, चावल, लाल गाज़र और हरी मटर के दानों के साथ गर्मागरम सुनहरी खिचड़ी पकाइए उसपर पिघलते देसी घी के साथ उसके चार यार और गुड़, गज़क, तिलकुट का मज़ा लीजिए. मकर संक्रांति शुभ हो.