हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था। मान्यता है कि, उनके जन्म पर ही गुरु पूर्णिमा जैसे महान पर्व मनाने की परंपरा को शुरू किया गया। गुरु पूर्णिमा महोत्सव पूरी तरह से महर्षि वेदव्यास को समर्पित है।
मान्यता है कि, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं का आदर-सम्मान करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। इस दिन गुरु मंत्र लेने की भी परंपरा है। गुरु पूर्णिमा शिक्षा और अध्ययन के शाश्वत मूल्य की याद दिलाती है, क्योंकि सम्मानित गुरु दुनिया के साथ अपनी विशेषज्ञता को खुलकर साझा करते हैं।
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन स्नान-दान बहुत ही शुभ माना जाता है। गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ी पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
गुरु पूर्णिमा महत्व
पौराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था और उनका जन्मोत्सव गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
दान-पुण्य के कार्य करें : गुरु पूर्णिमा के दिन आप जरूरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान कर सकते हैं। आप अपने गुरुओं की शिक्षाओं से जुड़े उद्देश्यों का भी समर्थन कर सकते हैं। आत्म-चिंतन और ध्यान का अभ्यास करें: आज आत्म-चिंतन और ध्यान के लिए कुछ समय निकालें।