छत्तीसगढ़ में शासकीय पदों को गलत उपयोग किया जा रहा है। जैसे एस.डी.एम., तहसीलदार और पुलिस कर्मचारी अपने निजी वाहन पर पद का उपयोग कर रहे है। यह किसके निर्देश से हो रहा है ? जैसे- गाड़ी पर अपने पद का प्लेट लगवाकर एक जिले से दूसरे जिले में जाना, पद के माध्यम से अपनी धौस जमाना, टोल टेक्स बचाना, एक जिले से दूसरे जिले का पदभार सम्भालना इत्यादि। वही प्रति दिन हजार-दो हजार रूपये का डीजल-पेट्रोल खर्च एवं ड्राइवर खर्च से लेकर महीने में लगभग 60 हजार रूपये तक का खर्चा लगता है, क्या शासन वेतन अगल से पैसा देती है ? अपने वेतन से इतना बड़ा खर्चा उठा सकते है। इससे साबित रहा है कि, शासकीय कर्मचारी पब्लिक से पैसा वसूल रहा है।
ये सोचनीय विचार है कि, जिस मुख्यालय का अधिकारी है उसको मुख्यालय में रहना अति आवश्यक है, परंतु वह गाड़ियों में बैठकर घुमते रहते है। इस पर छत्तीसगढ़ शासन विशेष ध्यान दें। ताकि आम जनता का दोहन न हो सके। उच्च अधिकारी, बाबू एवं चमरासी भी इसकी चपेट में है। जब कोई भी नंबर दो का कार्य होता है उसको अधिकारी शाम तक निपटाते है। क्योंकि आम जनता न देख सके। क्या राज्य शासन ऐसे अधिकारी को अपने नाम का गाड़ी में प्लेट लगाने का अधिकार दिया है। अधिकार नहीं दिया है तो कार्यवाही क्यों नहीं होती ?
सोचने वाली बात है कि, शासकीय पद पर कार्य करने वाले अधिकारी जनता के पैसो पर ऐशो आराम कर रहे है। यहां तक कि, पटवारी भी जाति, आय और निवास उपलब्ध कराने के बदले पैसे की मांग रखती है। आज पटवारी व आर.आई. को देखा जाये तो करोड़ो के महल बनाये हुए है ये भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है ?
वही तहसीलदार द्वारा भी जमीनों का नामातरंतण के लिए मोटी रकम लेते है। जानकारी प्राप्त हुआ है कि, कुछ भू-माफियाओं द्वारा जमीनों को कई लोगों के नाम चढ़ा चुके है। राजस्व विभाग तो इस मामले में बदनाम हो चुकी है। कोई भी काम कराने से पहले पैसा लेते है। कहीं-कहीं तो बाबू भी इतना काबिल हो चुके है कि, पैसे ले लेते है और तहसीलदारों को गुमराह कर देते है। पटवारी एवं आर.आई. एक विवादित संज्ञान में आते है। इन लोगों का काम केवल जमीनों को कम करना और बढ़ाना है यहा तक कि, जिस-जिस जमीनों में हरे-भरे वृक्ष लगे हुए होते है उसे गायब ही कर देते है। नीचे-से-ऊपर तक बिना पैसे के कोई खेल नहीं हो रहा।
अभी हाल ही में बैकुण्ठपुर में स्थित मार्गदर्शन रोड पर लगभग दस हर्रा के बड़े-बड़े पेड़ को रजिस्ट्रिी से गायब कर दिया गया। जिसमें आरा मिल के संचालक अशोक विश्वकर्मा एवं शर्मा आरा से स्वंय काटा गया और अपने ट्रेक्टर से ले गया। जब समाचार प्रकाशन हुआ तो अपने आरा मशीन से लड़की को लापता कर दिया। पूरे प्रशासन को अशोक विश्वकर्मा एवं शर्मा चैलेंज कर दिया है कि, मेरे द्वारा लड़की काटी गयी वह आज तक प्रशासन बरामद नहीं कर पाये। जबकि पूरे बैकुण्ठपुर की जनता देख रही है उसके बावजूद भी उस व्यक्ति ने सबके आंखों में मिर्चा डाल दिया। क्या बबूल का पेड़ हरा-भरा नहीं रहता उस पर भी प्रशासन की कोई निगाह नहीं ? क्योंकि आरा मिल वाला बहुत चतुर व चलाक किश्म का व्यक्ति है सभी अधिकारियों को मिला कर चलता है। बताया जाता है कि, कीमती ईमारती लकड़ियों को रात में काट कर इधर-उधर कर देता है। प्रशासन को चाहिए कि, ऐसे आरा मिल को जप्त कर बंद कराने का निर्देश दें।