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चैत्र नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा…………

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”चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी”॥

नवरात्रि की छठे दिन देवी कात्यायनी को समर्पित है। इस दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। माता का ये स्वरूप संयम और साधना का प्रतीक है। मां कात्यायनी का स्वरूप चमकीला और तेजमय है। मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इनकी पूजा से शीघ्र विवाह के योग, मनचाहा जीवनसाथी मिलने का वरदान प्राप्त होता है। कहा जाता है कि द्वापर युग में गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए माता कात्यायनी की पूजा की थी। मां कात्यायनी महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जानी जाती हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा और कुछ उपाय करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही विवाह के योग बनते हैं।

माता कात्यायनी शक्ति और वीरता का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्हें एक योद्धा देवी के रूप में दर्शाया गया है जिन्होंने कई असुरों का संहार किया था। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा करने से भक्तों को साहस सुरक्षा और शांतिपूर्ण जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

नवरात्रि में छठे दिन की अधिष्ठात्री देवी मां कात्यायनी हैं। इनके नाम की उत्पति के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं-

कात्यायन महर्षि का आग्रह था कि देवी उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी नवमी तक इन्होंने तीन दिन कात्यायन द्वारा की जा रही अर्चना स्वीकृत की और दशमी को महिषासुर का वध किया। देवताओं ने इनमें अमोघ शक्तियां भर दी थी।

सम्पूर्ण ब्रज की अधिष्ठात्री देवी यही माता थीं। चीर हरण के समय माता राधा और अन्य गोपियां इन्हीं माता की पूजा करने गईं थीं। कात्यायनी माता का वर्णन भागवत पुराण 10.22.1 में भी है, श्लोक है: –
हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दत्रजकुमारिकाः । चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्च्चनव्रतम्॥

अर्थात: – श्रीशुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित्। अब हेमन्त ऋतु आयी। उसके पहले ही महीने में अर्थात् मार्गशीर्ष में नन्द बाबा के व्रज की कुमारियां कात्यायनी देवी की पूजा और व्रत करने लगीं। वे केवल हविष्यान्न ही खाती थीं।

देवी पुराण के अनुसार आज के दिन 6 कन्याओं का भोज करवाना चाहिए। स्त्रियां आज के दिन स्लेटी (ग्रे) रंग के वस्त्र या साड़ियां पहनती हैं।

कत ऋषि के पुत्र महर्षि ’कात्य’ थे। महर्षि ’कात्यायन’ इन्ही के वंशज थे। घोर तपस्या के बाद माता पार्वती/कात्यायनी की पूजा सर्वप्रथम करने का श्रेय महर्षि कात्यायन को जाता है। इसीलिए इन माता का नाम देवी कात्यायनी पड़ा। ऐसी मान्यता है कि जो साधक देवी के इस अवतार की पूजा सच्ची श्रद्धा के साथ करते हैं उन्हें जीवन में कभी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ता है।

मां कात्यायनी की पूजा विधि –

भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे नवरात्र के छठे दिन जल्दी उठें, स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा घर को साफ करें और मां कात्यायनी की प्रतिमा पर ताजे फूल चढ़ाएं। कुमकुम का तिलक लगाएं। इसके बाद वैदिक मंत्रों का जाप और प्रार्थना करें। मां को कमल का फूल अवश्य चढ़ाएं। फिर उन्हें भोग के रूप में शहद चढ़ाएं। आरती से पूजा को पूर्ण करें और क्षमा प्रार्थना करें।

मां कात्यायनी का प्रिय रंग –

नवरात्रि के छठे दिन का रंग हरा है, जो सद्भाव और विकास का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रकृति, उर्वरता और शांति का भी प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन हरा रंग धारण करना बेहद शुभ माना जाता है, जो जातक ऐसा करते हैं उन्हें माता रानी की कृपा से सुरक्षा, वीरता, समृद्धि की प्राप्ति होती है।

अगर आप देवी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस दिन हरा रंग जरूर पहनें और देवी से प्रार्थना करें कि वह आपको शांति प्रदान करें।

”या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”॥

 

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