बैकुण्ठपुर झुमका महाउत्सव का किन्हीं कारणों से समाचार लेट हुआ उसके लिए खेद है। सरकार किसी का भी हो पर प्रशासन और दलालों के मजे ही अलग रहते है। कुछ दलाल लोग कोयला चोरी व अपने क्षेत्र का सोसायटी से चावल की चोरी करके बैठे हुए है। वही लोग पूर्व में कांग्रेस में थे और आज वही लोग बीजेपी में दिख रहे हैं। जितने भी ब्याज का व्यापार करने वाले है वह सभी बीजेपी के भक्त हो चुके हैं। इनको कोई मतलब नहीं है कि, भाजपा आये या कांग्रेस आये इनका काम बनना चाहिए। झुमका महाउत्सव में यह देखने को मिला है कि, बैकुण्ठपुर के जन सम्पर्क अधिकारी भी नयी-नयी पीढ़ियों के पत्रकारों के दबाव में आकर होश घुमा रहे है। उन्होंने संपादक को भी आमंत्रित करना भूल गये और संपादक ने भी झुमका महाउत्सव का बहिष्कार किया। वहीं नयी पीढ़ी के पत्रकार जो कि जन सम्पर्क अधिकारी का पट्टा लटका-लटकार दिखे। गणमान्य, पत्रकारों और पार्टी के लोगों के लिए भी बैठने की व्यवस्था तक नहीं की गयी थी। जबकि पैसे की कोई कमी नहीं होने के बाद भी व्यवस्था नहीं हुआ और पैसो को दबा लिया गया। देखने व सुनने वाली बात है कि, क्या प्रशासन को भ्रष्टाचारी नहीं दिखा ? जब धान खरीदी केन्द्र से पैसा वसूली किया गया था। तो सूत्रों की माने तो ठेकेदारों से, एस.ई.सी.एल. व सभी विभागों से वसूली किया गया है। यह चर्चा का विषय है कि, विभाग के द्वारा पैसा दिया गया है तो क्या वह अपने वेतन से पैसा दिया गया है । सभी भ्रष्टाचारी व फर्जी बिलों के आधार पर शासन का पैसा निकाला गया होगा। और प्रशासन ऐसे चापलूस पत्रकारों को पसंद करती है। जो कि उनकी चापलूसी जैसी बातों को झूठी खबरे छापते रहे। सूत्र बताते है कि, ऐसे कुछ लोगों को प्रशासन 5,000-20,000 तक झूठी खबर समाचार पत्रों में छापने के लिए दिया जाता है। प्रशासन द्वारा डाक विभाग से डाकिया पैसे देकर डाक वापस ले जा सकता है तो पत्रकार क्या चीज है। अधिकारी 2-3 साल के बाद स्थानांतरण हो जाता है और चाटूकार पत्रकार को पैसा मिल जाता है। और इन सब में आम जनता को परेशानी होती है। प्रशासन की छत्रछाया में धान खरीदी केन्द्रों में खरीददारों ने अपना अस्तित्व ही पूरा बेच दिया है। पैसा की आड़ में अच्छे-अच्छे पंडित दारू-मुर्गा-मीट खाना सीख चुके है और चरित्र विहिन हो गये है। सूत्र बताते है कि, प्रशासन और अमला अधिकारियों ने धान खरीदी केन्द्रों से पैसा लिया है। क्या प्रशासन के मुख्या मौन धारण करके बैठे रहे और देखते रहे कि, क्या-क्या हो रहा है और कार्यवाही क्यों नहीं हो रहा है। प्रशासन द्वारा दो ब्लाॅक का जिला भी नहीं संभाला जा रहा है। अब देखने वाली बात यह है कि, एक धान खरीदी केन्द्र के कर्मचारी का इनकम 50 लाख से ऊपर का है। तो अब अनुमान लगाया जा सकता है कि, छत्तीसगढ़ में धान खरीदी केन्द्रों से अरबो रूपये का हेरा-फेरी कर लिया जाता होगा। धान खरीदी के कार्यकर्ता 20-20 लाख के कारों में घुम रहे हैं। जो कि पूर्व में देखा गया था कि, धान खरीदी केन्द्र सलका के कम्प्यूटर आॅपरेटर ने लाखों का घोटाला किया। फिर भी उनके उपर कोई कार्यवाही नहीं हुई, क्योंकि आॅपरेटर पहंूच वाला है और धान खरीदी प्रभारी को जेल हो गया। उसके उपरांत उसी आॅपरेटर को गिरजापुर में भेज दिया गया वहां भी करोड़ो रूपये का हेरा-फेरी किया। अपने पहुंच के कारण वहां भी बच गया। धान खरीदी प्रभारी के ऊपर अपराध दर्ज हो गया। तीसरी बार में वह जामपारा धान खरीदी केन्द्र में आया वहां भी लाखों का घोटाला किया पर किस अधिकारी के छत्रछाया में बच रहा है। ऐसे चोर आॅपरेटरों को प्रशासन अपने छत्रछाया में बचाये हुए है।